देख सीमाओं की दुर्दशा, लिखे शृंगार हम कैसे आंखे मौन है सब की, लिखे अंगार हम कैसे कहीं तो रो रहा है कश्मीर, कहीं हलधर दुखी होते द्रवित मन में प्रेम धन भरकर, लिखे लाचार हम कैसे हमीं कलमकारों ने हर पल, राजनीति को चेताया कैसे खुले आंँख शासन की, […]
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ग़ज़ल …………1 जख़्म कितने छुपाने पड़े। सौ बहाने बनाने पड़े। ==================== आँसुओं पर नज़र जब गई, हैं ख़ुशी के ,जताने पड़े। ==================== जो तरफ़दार बनकर मिले, नाज़ उनके उठाने पड़े। ==================== पास थे जो शिक़ायत,गिले, आज दिल से हटाने पड़े । ==================== जो ख़ुशी ने दिए फायदे, सब हवा में […]
