राजनीति और समाज की बौध्दिक इकाइयों में मोदी-सरकार पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर के इस राजनीतिक आरोप पर व्यापक बहस होनी चाहिए कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत भारत को हिन्दू-पाकिस्तान बनने की दिशा में उत्प्रेरित कर सकती है। सत्तर सालों से भारत में ‘पाकिस्तान’ […]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एप’ के जरिए भारत की स्त्रियों से सीधा संवाद कायम किया और डींग मारी कि हमारी सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए क्या-क्या किया है। थोड़ा-बहुत उन्होंने किया जरुर है लेकिन ऐसा लगता है कि भारत की महिलाओं के रोजगार की स्थिति के बारे में उन्हें […]

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मुझे न बांधना इन कागज के पन्नो में, उँची दीवारो में, दफ्तर की मेजों में, साहुकारों की कोठरी में, गरीब की झोपड़ी में, रसुखदारों की जेबो में, भ्रष्टों की चाटुकारीता में, नेता के कुर्ते में ……. मैं दहकती कलम से निकली खबर हूँ ‘अवि’ मैं बारुद की स्याही के अरमान हूँ, मैं […]

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाक़ात कर रहे हैं। अगर वे मुसलमानों के हालात जानने के लिए ऐसा कर रहे हैं, तो उन्हें वरिष्ठ पत्रकार फ़िरदौस ख़ान की ये विशेष रिपोर्ट ज़रूर पढ़नी चाहिए। देश को आज़ाद हुए सात दशक बीत चुके हैं। इस दौरान बहुत कुछ बदल गया, लेकिन अगर कहीं कुछ नहीं बदला है, तो वह है देश के मुसलमानों की हालत। यह बेहद अफ़सोस की बात है कि आज़ादी के सात दशक बाद भी मुसलमानों कीहालत अच्छी नहीं है। उन्हें उन्नति के लिए समान अवसर नहीं मिल रहे हैं। नतीजतन, मुसलमान सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से बेहद पिछ्ड़े हुए हैं। संपत्ति के मामले में भी मुसलमानों की हालत बेहद ख़स्ता है। ग्रामीण इलाक़ों में 62.2 फ़ीसद मुसलमान भूमिहीन हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 43 फ़ीसद है। वक़्फ़ संपत्तियों यहां तक की क़ब्रिस्तानों पर भी बहुसंख्यकों का क़ब्ज़ा है। शर्मनाकबात तो यह भी है कि इन मामलों में वक़्फ़ बोर्ड के अधिकारियों की मिलीभगत शामिल रहती है। मुसलमानों को रोज़गार के अच्छे मौक़े भी बहुत कम ही मिल पाते हैं। इसलिए ज़्यादार मुसलमान छोटे-मोटे कामधंधे करके ही अपनागुज़ारा कर रहे हैं। साल 2001 की जनगणना के मुताबिक़ मुसलमानों की आबादी 13.43 फ़ीसद है, लेकिन सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की हिस्सेदारी बहुत कम है। सच्चर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक़ सुरक्षा बलों में कार्यरत 18लाख 89 हज़ार 134 जवनों में 60 हज़ार 517 मुसलमान हैं। सार्वजनिक इकाइयों को छोड़कर सरकारी रोज़गारों में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व महज़ 4.9 फ़ीसद है। सुरक्षा बलों में 3.2 फ़ीसद, भारतीय प्रशासनिक सेवा में 30, भारतीयविदेश सेवा में 1.8, भारतीय पुलिस सेवा में 4, राज्यस्तरीय विभागों में 6.3, रेलवे में 4.5, बैंक और रिज़र्व बैंक में 2.2, विश्वविद्यालयों में 4.7,  डाक सेवा में 5, केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में 3.3 और राज्यों के सार्वजनिक उपक्रमों में10.8 फ़ीसद मुसलमान हैं। ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले 60 फ़ीसद मुसलमान मज़दूरी करते हैं। शिक्षा के मामले में भी मुसलमानों की हालत बेहद ख़राब है। शहरी इलाक़ों में 60 फ़ीसद मुसलमानों ने कभी स्कूल में क़दम तक नहीं रखा है। हालत यह है कि शहरों में 3.1 फ़ीसद मुसलमान ही स्नातक हैं, जबकि ग्रामीण इलाक़ों में यह दरसिर्फ़ 0.8 फ़ीसद ही है। साल 2001 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक़ मुसलमान दूसरे धर्मों के लोगों के मुक़ाबले शिक्षा के मामले में बहुत पीछे है। देश के तक़रीबन सभी राज्यों में कमोबेश यही हालत है। शहरी मुसलमानों की साक्षरताकी दर बाक़ी शहरी आबादी के मुक़ाबले 19 फ़ीसद कम है। ग़ौरतलब है कि साल 2001 में देश के कुल 7.1 करोड़ मुस्लिम पुरुषों में सिर्फ़ 55 फ़ीसद ही साक्षर थे, जबकि 46।1 करोड़ ग़ैर मुसलमानों में यह दर 64.5 फ़ीसद थी। देश की6.7 करोड़ मुस्लिम महिलाओं में सिर्फ़ 41 फ़ीसद महिलाएं साक्षर थीं, जबकि अन्य धर्मों की 43 करोड़ महिलाओं में 46 फ़ीसद महिलाएं साक्षर थीं। स्कूलों में मुस्लिम लड़कियों की संख्या अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के मुक़ाबले तीनफ़ीसद कम थी। 101 मुस्लिम महिलाओं में से सिर्फ़ एक मुस्लिम महिला स्नातक है, जबकि 37 ग़ैर मुसलमानों में से एक महिला स्नातक है। देश के हाईस्कूल स्तर पर मुसलमानों की मौजूदगी महज़ 7.2 फ़ीसद है। ग़ैर मुस्लिमों के मुक़ाबले44 फ़ीसद कम मुस्लिम विद्यार्थी सीनियर स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं, जबकि महाविद्यालयों में इनकी दर 6.5 फ़ीसद है। स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाले मुसलमानों में सिर्फ़ 16 फ़ीसद ही स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल कर पाते हैं।मुसलमानों के 4 फ़ीसद बच्चे मदरसों में पढ़ते हैं, जबकि 66 फ़ीसद सरकारी स्कूलों और 30 फ़ीसद बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। फ़िरदौस ख़ान Post Views: 23

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सौरमंडल की हम संतान अलग रंग और अलग है नाम….(2) सबसे पहला ,बड़ा और पीला मैं सूरज हूँ आग का गोला दूजा  में बुध सूरज के पास खड़ा हूँ दिखने में छोटा पर बलवान बड़ा हूँ तीजा मैं शुक्र हूँ बड़ा मज़ेदार रहता  गरम  मगर हूँ चमकदार चौथी मैं पृथ्वी […]

शव शय्या पर हुवा जलाशय ,अब भी न्याय की आस हे विनाश करे जो सरोवर का ,क्या यही विकास हे खुनी आसू रो रहा जलाशय भरा लबालब था कभी मूक दर्शक बने हुवे जो जिम्मेदार थे वो सभी रसुब सत्ता के मद में तुम आततायी होने वालो बूंद बूंद को तरसोगे तुम मत मुगालता कोई पालो तुम से तो राजा अच्छे थे जो जनता के सेवक सच्चे थे पर्यावरण के रखवाले थे नहीं तुम जेसे विष वाले थे जलाशय की रखवाली करते थे पानी की रक्छा के लिए मरते थे सरकारी जमींन खाली  रखते थे सारे पशुधन उस पर चरते थे जलाशय में  पानी होता था गहन गंभीर मालवा होता था फिर ना जाने क्यों आजादी आयी खुब मनमानी और बर्बादी लायी काकड़ गोये राजनीती की बलि चड़े चोकीदार और नेता उनपर टूट पड़े पशुपालन की जो थी जमीन उसका मालिक बन बेठा अमिन मनमाने निर्णयों में पर्यावरण को खाया हे बिना पेड़ के आया सब पर मोत का साया हे षडयंत्र करके जलाशयों को  तोडा   हे गहरा करने के नाम पर उनका पेंदा फोड़ा हे जब खाली जलाशय शव शय्या पर थे पड़े भू माफिया और छुट भय्या उस पर टूट पड़े कंक्रीट का जंगल बेचारे तालाबो पर बन गया जीवन दान देने वाला जलाशय शमशान बन गया जलचर जानवरों की आत्मा वहा बिलखती हे परियो और राहगीरों की रूहे वहा सुलगती हे फिर कुवे बावड़ियो का नम्बर आया अल्टरनेटिव में उनके हेंडपंप को लगवाया जलाशय सूखने से बावडियो के पेंदे सूखे हेंड पंप चला चलाके बहनों के पेडू दुखे जब पर्यावरण की वाट लगा डाली तो पानी के स्रोत हो गये सब खाली जंगलो और खेतो में सड़के जब बनवाई खेती बाड़ी को भी मशीनों के मोहताज बनाई विदेशी दवाई और खाद देश में जब घुस आया साथ में ढेरो बीमारी और कुपोषण ले आया पहले जो ब्लड टेस्ट में भी  था घबराता अब ख़ुशी ख़ुशी वो हार्ट सर्जरी करवाता सारी कमाई घुस जाती हे साबुन और दवाओ में फिर भी इंसान जिन्दा हे सपनो और हवाओ में #राजेश भंडारी “बाबू” इंदौर(मध्यप्रदेश) Post Views: […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।