फागुन अब मुझे नहीं रिझाता है, जबसे शब्द कोषों में.. प्यार की परिभाषा बदल गई। जबसे रंग भूल गए अपनी असलियत, जबसे तुम्हारी मुस्कान कुटिल हो गई.. जबसे प्यार के खनकते स्वर कर्कश हो गए, तबसे फागुन अब मुझे नहीं रिझाता है। जबसे रिश्तों में पैबंद लगने लगे, जबसे प्रेम […]