व्यापारी सँग त्रस्त हैं शिक्षक और त्रस्त हैं विकल किसान, फिर भी हम कहते नहिं थकते मेरा भारत देश महान। ००० नाम अतिथि शिक्षक पर झेले हरदम वे शोषण की मार, मिलता वेतन कार्य दिवस का मुफ़्त रहे समझो रविवार। नियमित शिक्षक से हरदम वो विवश झेलने बस अपमान, फिर […]
काव्यभाषा
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इंसाँ झूठे होते हैं इंसाँ का दर्द झूठा नहीं होता इन होंठों पर भी हंसी होती गर अपना कोई रूठा नहीं होता। मैं जानता हूं कि आंखों में बसे रुख़ को मिटाया नहीं जाता, यादों में समाये अपनों को भुलाया नहीं जाता। रह–रहकर याद आती है अपनों की ये ग़म छुपाया नहीं जाता, सपनों में डूबी पलकों की कतारों को यूं उठाया नहीं जाता। इंसाँ झूठे होते हैं इंसाँ का दर्द झूठा नहीं होता इन होंठों पर भी हंसी होती गर अपना कोई रूठा नहीं होता। #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 476