जिंदगी भर जिंदगी के बिखरे तिनके चुनता रहा। बिगड़ते हुए ख्वाबो को यूँ ही बुनता चला गया।। भरे हुए जख्म जिन पर नमक लगाया लोगो ने, उन छिले जख्मो को मरहम लगाता चला गया। सपने जो पेड के पत्तो से ओश की बूंदों सा टपक रहे थे। उन बूंदों को […]
काव्यभाषा
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