ऋषि-मुनियों की संस्कृति त्याग-तपस्या और आत्मज्ञान, आत्म साक्षात्कार सविवेक रखते सभी धर्म की टेक, यथावत् मर्यादा व्यवहार टिका उस पर सद् व्यवहार, हमारी आश्रम व्यवस्था का यही तो था आधार, ब्रह्मचर्य वानप्रस्थ सन्यास अर्थ संचय से रहते दूर, अर्थ ही अनर्थ की जड़ है मठाधिपति बने अर्थ के गढ़ है। […]