है नाट्यशाला विश्व यह,अभिनय अनेकों चल रहे; हैं जीव कितने पल रहे,औ मंच कितने सज रहे। रंग रूप मन कितने विलग,नाटक जुटे खट-पट किए; पट बदलते नट नाचते,रुख़ नियन्ता लख बदलते। उर भाँपते सुर काँपते,संसार सागर सरकते; निशि दिवस कर्मों में रसे,रचना के रस में हैं लसे। दिगदर्श जो नायक […]
