चुपचाप ! चुपचाप ! बिना आहट के सजाते जीवन महकाते घर की बगिया.. मन-उपवन ! बचपने में हम.. थामकर उंगलियाँ.. चलते, गिरते, उठते सीखते बोलियाँ, कितने शान्त रह जाते आप.. चुपचाप ! चुपचाप ! गूँजती किलकारियाँ सुनकर हँसते.. खुश होते.. आँसू भरकर जीवन का पाठ गोदी में ले.. समझाते, पढ़ाते […]