यह स्थिति अपने-आप में बेहद दुखद।

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हिंदी पटकथा लेखकों की इस प्रतियोगिता में जिसके निर्णायक मंडल में हिंदी फिल्मों के बड़े नाम जुड़े हुए हैं आमिर खान सहित रोमन लिपि की लगाई गई शर्त प्रतिभागियों के लिए,हिंदी के लिए और भाषा मात्र के लिए अपमानजनक है और बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। यह अवैध या असंवैधानिक तो नहीं कही जा सकती,क्योंकि राजभाषा अधिनियम सरकारी कार्यालयों और निगमों के लिए है,गैर सरकारी संस्थाओं के लिए नहीं,लेकिन इस बात से इसकी गंभीरता कम नहीं हो जाती। यह सब जानते हैं कि हिंदी फिल्म जगत की युवा पीढ़ी चाहे वह अभिनेताओं का सवाल हो या निर्देशकों का हिंदी पढ़ने और लिखने की अभ्यस्त नहीं है,इसलिए पटकथा और संवादों के मामले में रोमन का प्रयोग हो रहा है। यह अपने-आप में हिंदी फिल्म जगत और उसके जिम्मेदार लोगों के लिए शर्म की बात होनी चाहिए लेकिन नहीं है। सामान्य-सी बात है कि दुनिया के सबसे बड़े फिल्म उद्योग के कामकाज की भाषा वही होनी चाहिए,जिस भाषा में वे फिल्में बनती हैं,चलती हैं और जिसके कारण लाखों लोग रोजी-रोटी कमाते हैं,लेकिन अभिनेताओं और निर्देशकों की जो नई पीढ़ी आई है वह बचपन से ही हिंदी पढ़ने और लिखने की अभ्यस्त नहीं है,अंग्रेजी में ही जीती है। उनसे यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि,जब वह फिल्मों में काम करने के लिए मेहनत करके अभिनय,निर्देशन तथा फिल्म निर्माण और उसकी विभिन्न विधाएं सीखते हैं तो उस भाषा को सीखने में क्या समस्या है जो उनके काम की भाषा भी है और आय की भाषा भी है,लेकिन हमारे देश में और फिल्म उद्योग में इतनी समझ और अपनी भाषाओं पर स्वाभाविक अभिमान और प्रेम होता तो देश इस हाल में न होता। हिंदी फिल्म जगत  की यह स्थिति अपने-आप में बेहद दुखद है। युवा पटकथा लेखकों  के लिए प्रतियोगिता में भाग लेने की शर्त ही रोमन लिपि को बना दिया जाए तो यह लगभग आपराधिक हो जाता है। यह और भी दुखद है कि, निर्णायक मंडल में आमिर खान और राजू हिरानी जैसे मूर्धन्य फिल्मकार भी हैं। आमिर तो विशेष तौर पर भाषा के प्रति अपनी संवेदनशीलता और विचारशीलता के लिए जाने जाते हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि यह शर्त न केवल बेहद अनुचित और अनैतिक है,बल्कि यह पूरे हिंदी जगत की उभरती हुई प्रतिभाओं को प्रतियोगिता से बाहर रखेगी और इससे यह प्रतियोगिता ही प्रतिभाओं से वंचित रहेगी। कहानी और पटकथा लेखन एक मौलिक और रचनात्मक काम है,जिसमें अभिव्यक्ति की सहज भाषा हिंदी ही हो सकती है अटपटी रोमन नहीं। मैं यह भी आशा करता हूं आमिर और अमिताभ जैसे शीर्षस्थ अभिनेता-फिल्मकार इस मामले में फिल्म उद्योग में हिंदी को संवाद और पटकथा में पुनर्स्थापित करने की पहल का नेतृत्व करेंगे। इससे हमारी फिल्में बेहतर और समृद्धतर ही होंगी। इस मामले को केन्द्रीय  सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के स्तर पर भी उठाया जाना चाहिए।

(साभार-वैश्विक हिंदी सम्मेलन) 

           #राहुल देव(वरिष्ठ पत्रकार) 

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।