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की थी कृपा निधान,
कृपा पहले जैसी आपने।
वैसे ही कृपा निधान,
कृपा अपनी कीजिए।
सिन्धु की लघु बून्द को,
यूं ही तप्त रेत पर।
सैकत शैवाल संग,
सूखने न दीजिए।
कर्म-अकर्म विकर्म-सुकर्म,
जो भी किया सठ सेवक।
उसमें परिहर त्रुटि
संज्ञान लीजिए।
मधुर मनोहर है
जगत धरोहर किंचित
निज जन पर
कोप नहीं कीजिए॥
#विजयकान्त द्विवेदी
परिचय : विजयकान्त द्विवेदी की जन्मतिथि ३१ मई १९५५ और जन्मस्थली बापू की कर्मभूमि चम्पारण (बिहार) है। मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार के विजयकान्त जी की प्रारंभिक शिक्षा रामनगर(पश्चिम चम्पारण) में हुई है। तत्पश्चात स्नातक (बीए)बिहार विश्वविद्यालय से और हिन्दी साहित्य में एमए राजस्थान विवि से सेवा के दौरान ही किया। भारतीय वायुसेना से (एसएनसीओ) सेवानिवृत्ति के बाद नई मुम्बई में आपका स्थाई निवास है। किशोरावस्था से ही कविता रचना में अभिरुचि रही है। चम्पारण में तथा महाविद्यालयीन पत्रिका सहित अन्य पत्रिका में तब से ही रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। काव्य संग्रह ‘नए-पुराने राग’ दिल्ली से १९८४ में प्रकाशित हुआ है। राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति के प्रति विशेष लगाव और संप्रति से स्वतंत्र लेखन है।
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Mon Nov 6 , 2017
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