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सदियों से चंद बूंदें आँसूओं की,
पलकों पर आकर थमी हैं…
जाने-अनजाने किस्से कितने,
पैबस्त हैं उनमें।
सुलगती रातों में,
विरह के मारों की…
झुलसती रुहों के
घुटे-घुटे से नगमे,
कितने जज्ब हैं।
पूस की सिहरन,
जेठ दुपहरी बनती…
बसंत फागुन बनते,
सावन भादो सूखे।
जिस्म पथ बन उजड़ गए,
नैना थक गए राह तक-तक…
रुह बेचारी पिंजर तन माहि,
लहूलुहान हो रही॥
#डॉ. नीलम
परिचय: राजस्थान राज्य के उदयपुर में डॉ. नीलम रहती हैं। ७ दिसम्बर १९५८ आपकी जन्म तारीख तथा जन्म स्थान उदयपुर (राजस्थान)ही है। हिन्दी में आपने पी-एच.डी. करके अजमेर शिक्षा विभाग को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक रुप से भा.वि.परिषद में सक्रिय और अध्यक्ष पद का दायित्व भार निभा रही हैं। आपकी विधा-अतुकांत कविता, अकविता, आशुकाव्य आदि है।
आपके अनुसार जब मन के भाव अक्षरों के मोती बन जाते हैं,तब शब्द-शब्द बना धड़कनों की डोर में पिरोना ही लिखने का उद्देश्य है।
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Mon Nov 6 , 2017
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