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जीता तन का संग्राम मगर,
मन की सरहद पर हार गया।
कुरुक्षेत्र आ गया आँगन तक,
लड़ना अपनी मजबूरी थी
घेरे था भीषण चक्रव्यूह
अपनों से अपनी दूरी थी,
लड़ती थी जाने कहाँ-कहाँ
यह गुडाकेश-चेतना प्रबल,
हम ही जाने क्यों भूल गए
मोहन की गीता पूरी थी।
सोते मूल्यों के स्वजनों को,
अश्वत्थामा-छल मार गया।
इच्छाओं ने आकाश छुआ
लेकिन अपंग रह गया कर्म
भावों में मधुवन खिला रहा,
लंगड़ाकर चलता रहा धर्म
जब सुनी प्रशंसा फूल उठा,
निंदा सुनकर लग गई आग
रसना पर राम जगे लेकिन,
हर बार सुलाता रहा चर्म।
यत्नों की गंगा सूख गई,
जब-जब भी मन हरिद्वार गया।
पैरों में जलता मरुथल था,
लेकिन सपनों में वृंदावन
साँसों की यमुना के तट पर,
राधा को चलता मनमोहन
यह लुका छिपी का खेल न जाने,
किन सदियों से खेल रहा
कोई झंकार न बुला सकी,
हारी पायल,रोया कंगन।
हर बार देह -तट पर ढूंढा,
छलिया प्राणों के पार गया॥
#डॉ.रामस्नेही लाल शर्मा ‘यायावर’
परिचय : डॉ.रामस्नेही लाल शर्मा ‘यायावर’ का जन्म फिरोजाबाद जनपद के गाँव तिलोकपुर में हुआ है। एमए,पीएचडी सहित डी.लिट्. की उपाधि आपने प्राप्त की है। मौलिक कृतियों में २७ आपके नाम हैं तो ११० में लेखन सहभागिता है। सम्पादन में भी १२ में आपकी सहभागिता है,जबकि आकाशवाणी के दिल्ली, मथुरा,आगरा व जबलपुर केन्द्रों से रचना प्रसारण हुआ है। राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार के लिए आपने नेपाल,बहरीन,सिंगापुर,दुबई,हांगकांगऔर मकाऊ आदि की वेदेश यात्रा की है। साथ ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से एमेरिटस फैलो चयनित रहे हैं। आप नवगीत कोष के लिए शोधरत हैं तो अभा गीत व कहानी प्रतियोगिता में आपकी रचनाएँ प्रथम रही हैं। आपके निर्देशन में ४१ विद्यार्थियों ने शोध उपाधि पाई है। इतना ही नहीं,डॉ. यायावर के साहित्य पर ३ पीएचडी और ५ लघुशोध हो चुके हैं। आपका निवास फ़िरोज़ाबाद में ही है।
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