Read Time1 Minute, 5 Second
कितना आसान है,
अपने जीने के लिए
दूसरे को मार देना।
अपनी खुशी के लिए,
दूसरे को तार देना।
मजबूरी में झूठ बोलना,
तो फिर भी समझ में आता है
लेकिन जब बेवजह,
कोई किसी का दिल दुखाता है
तो इस मसखरेपन में ,एक
बचकानापन नजर आता है।
कैसे कहूँ कि बुद्धि की इस,
शरारत पर शीश मेरा झुक जाता है।
लेकिन अफसोस कि,
संबंध बिगड़ने के डर से
जमाना जहर भी निगल जाता है॥
#डॉ. देवेन्द्र जोशी
परिचय : डाॅ.देवेन्द्र जोशी गत 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकार के साथ ही कविता, लेख,व्यंग्य और रिपोर्ताज आदि लिखने में सक्रिय हैं। कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन इनका प्रिय शौक है। आप उज्जैन(मध्यप्रदेश ) में रहते हैं।
Post Views:
572
Mon Sep 18 , 2017
जननी-सी कोमल हिन्दी, निज भाषा का सम्मान रहे, अपनेपन की महक लुटाती, हिन्दी पर अभिमान रहे। भारतेंदु और द्विवेदी ने, इसकी जड़ों को सींचा है, ऐसे वरद पुत्रों से जग […]