लघुकथा विधा को किसी प्रमाण की ज़रूरत नहीं- डॉ दवे

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अखिल भारतीय लघुकथा अधिवेशन सम्पन्न

विचार प्रवाह साहित्य मंच के आयोजन में देशभर से जुटे लघुकथाकार

इंदौर । क्वांटम जहाँ विज्ञान की खोज है, वहीं लघुकथा भी साहित्य का महाप्रयोग है । लघुकथा को विधा के रूप में अब किसी के प्रमाण-पत्र की कोई जरूरत नहीं है। यह बात साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कही। डाॅ. दवे विचार प्रवाह साहित्य मंच द्वारा रविवार को आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा अधिवेशन में बोल रहे थे। इंदौर प्रेस क्लब के राजेंद्र माथुर सभागृह में इस एक दिवसीय अधिवेशन का आयोजन किया गया। विभिन्न सत्रों में देश के वरिष्ठ लघुकथाकारों ने लघुकथा के वर्तमान और भविष्य पर चिंतन-मनन किया, दो लघुकथाओं पर नाट्य प्रस्तुति हुई। करीब 20 लघुकथाकारों ने लघुकथा पाठ किया।

वरिष्ठ लघुकथाकारों और लघुकथा विधा के क्षेत्र में विशेष योगदान करने वाली संस्था लघुकथा शोध केंद्र भोपाल , क्षितिज, इंदौर और कथा दर्पण साहित्य मंच के पदाधिकारियों को सम्मानित किया गया। इस मौके पर शहर के 11 शिक्षाविदों द्वारा तैयार किए गए लघुकथा संग्रह ‘संचयन’ के आवरण पृष्ठ सहित अनेक पुस्तकों का विमोचन हुआ। सम्मान और विमोचन समारोह में सांसद
शंकर लालवानी, मराठी साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक अश्विन खरे, वरिष्ठ कवि नरेंद्र मांडलिक मंच मौजूद थे।

इससे पहले सुबह अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में जबलपुर से पधारे वरिष्ठ कथाकार पवन जैन ने कहा कि जिस लघुकथा को कभी फिलर माना जाता था वह अब पिलर बन गई है। सत्र के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शरद पगारे ने इंदौर में लघुकथा के इतने बड़े आयोजन पर प्रसन्नता जाहिर की। मुख्य अतिथि लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल की निदेशक श्रीमती कान्ता राय ने लघुकथा के क्षेत्र विस्तार के लिए और अधिक प्रयास करने पर जोर दिया। विशेष अतिथि प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी थे।

विमर्श और संवाद सत्र में वरिष्ठ लघुकथाकार भागीरथ परिहार (कोटा), अशोक भाटिया (करनाल हरियाणा), निहालचंद्र शिवहरे (झांसी), सविता मिश्रा (आगरा) सूर्यकान्त नागर (इंदौर), श्रीमती मीरा जैन (उज्जैन), डाॅ. योगेंद्रनाथ शुक्ल (इंदौर) घनश्याम मैथिल (भोपाल), अशोक सिहांसने ( बालाघाट), मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी आदि ने बतौर अतिथि विचार व्यक्त किये। संवाद सत्र के मुख्य अतिथि वीणा के संपादक राकेश शर्मा थे।

मालवा थिएटर के कलाकारों ने लघुकथा का मंचन किया और करीब 20 लघुकथाकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ इस मौके पर किया।
स्वागत भाषण विचार प्रवाह साहित्य मंच की संस्थापक अध्यक्ष सुषमा दुबे और संस्था परिचय अध्यक्ष मुकेश तिवारी ने दिया। विभिन्न सत्रों का संचालन अर्चना मंडलोई, डाॅ. दीपा व्यास, माधुरी व्यास ने किया। आभार देवेंद्र सिंह सिसौदिया ने माना।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।