ख़त

0 0
Read Time4 Minute, 36 Second
 hema
खत वही फिर से…….
आंखों को सराबोर करने वाला,
पलकों को भारी करने वाला।
मिला तुम्हारा खत फिर से॥
निचोड़ देती है कल्पनाएं,
अपने अस्तित्व की कहानी।
बेजुबान जिज्ञासा की बौखलाहट से,
आत्मा अंदर ही अंदर दम तोड़ देती है।
अंतर्द्वंद से घबरा उठता है तब मन,
और उत्तर पाने की उत्कंठा से प्रत्युत्तर में,लिखती है-कुछ इस क़दर॥
सिसकियां घुंघरु की तरह गले
में जब छम-छम आती  है।
मौसम की तरह तुम्हारे आने-जाने
का उसूल बेहतरीन है॥
कभी तेज हवा,
कभी बवंडर..
कभी  पुरवाई,
कभी तेज धार…..
बारिश की टप-टप बूंद के समान,
अनायास वृष्टि॥
पवन चाल से आंचल की मुंडेर पर,
तरह-तरह घने मेघ मंडल..
समान गड़गड़ आते हुए॥
एक बिजली अचानक छोड़ जाते हो?
क्या यह खत तुम्हारा उदासीन नहीं ???
अथवा इसमें कोई दोष नहीं ??
महसूस नहीं होता क्यों ???
वह अब अपनापन तुम्हारे सुलझे हुए विचारों में,
दिखता क्यों नहीं वह ओज भरा ह्रदय?
जिस पर कहीं मेरी परिभाषा भी लिखी है।
आहत होती मेरी संवेदनाएं॥
पीड़ा की कुंठा में खुद से लड़ती दिन-ब-दिन,
मेरी अभिलाषाएं,क्या दोष है
इनका ??
जो भटक रही हैं,
किसी फलसफे की खोज में॥
बातों में बहुत कुछ है?
पर जज्बातों में वह बहुत कुछ है…
जो बयां नहीं होता है लफ्ज़ों से॥
मुस्कुराते तो मेरे होंठ सिर्फ खुदा
को खुश करने के लिए है,
पर खुदा यही समझता है कि,
मैं खुश हूं इस जिंदगी के हालात पर॥
जोड़ दो मेरी भी कुछ बातें,
इस खत के एक मोड़ पर।
यह खत किसी किताब के पन्ने जैसा है॥दोनों तरफ लिखा हुआ,
इस पर नजर ठहर जाए..
इसमें ऐसा कुछ नहीं लिखा है,
बस,अनकहे शब्दों की धूमिल-सी रेखा। .
यतीम से  पन्ने पर एक चित्र उभरता है,
बेवजह शिकायत की एक नज्म भी छुपी है।
कराहते आंसूओं की तासीर में भीगे इस खत में॥
किसी के टूटते हौंसले की थोड़ी-सी झलक भी दिखेगी,
चंद लम्हें बरसात के भी दिखेंगे॥
 जब भीगे थे चांदनी रातों में,
 दो पंछी नील गगन की छत पर..
 शबनम की चाहत में जुड़ गए थे-
 दो फूल परस्पर आलिंगन भरकर॥
फिर अभी इस  खत में रह गई है,
कुछ यादें..
कुछ वादे,
कुछ दुआएं..
कुछ मीठे पल की भीनी-भीनी
महक भी बची है।
चलो वह बरसात भी गई अब तो,
अब नदी के घाट पर सिर्फ रेत है..
भटकती हुई।
और कुछ दूर पर है एक टूटा हुआ किनारा॥
दूर देश से आए पंछी अब जा चुके हैं,
अपने वतन को,
सिर्फ रह गई है,उनके पैरों की निशानी।
और तुम्हारे एक खत में रेत कुछ लिपटी हुई॥
शेष फिर मिलने पर चेतन मन से॥
                                                                                            #हेमा श्रीवास्तव
परिचय : हेमा श्रीवास्तव ‘हेमा’ नाम से लिखने के अलावा प्रिय कार्य के रुप में अनाथ, गरीब व असहाय वर्ग की हरसंभव सेवा करती हैं। २७ वर्षीय हेमा का जन्म स्थान ग्राम खोचा( जिला इलाहाबाद) प्रयाग है। आप हिन्दी भाषा को कलम रुपी माध्यम बनाकर गद्य और पद्य विधा में लिखती हैं। गीत, ‘संस्मरण ‘निबंध’,लेख,कविता मुक्तक दोहा, रुबाई ‘ग़ज़ल’ और गीतिका रचती हैं। आपकी रचनाएं इलाहाबाद के स्थानीय अखबारों और ई-काव्य पत्रिकाओं में भी छपती हैं। एक सामूहिक काव्य-संग्रह में भी रचना प्रकाशन हुआ है।

ई-पत्रिका की सह संपादिका होकर पुरस्कार व सम्मान भी प्राप्त किए हैं। इसमें सारस्वत सम्मान खास है। लेखन  के साथ ही गायन व चित्रकला में भी रुचि है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

इक्कीसवीं सदी का भारत

Tue Jul 25 , 2017
आज सुबह सड़क किनारे, बारिश के पानी से लबालब गंदी बस्ती में कुछ नंग-धड़ंग मासूम से दिखते बच्चों को कूड़े के ढेर में पड़ी जूठन के लिए मुहल्ले के भूखे खूंखार कुत्तों से लोहा लेते देखा। कुछ बुजुर्गों को उघाड़े बदन, खून से रिसते घावों के साथ टूटी चारपाई पर लोट-पोट होते देखा, स्वस्थ भारत में योगा करने की असफल कोशिश कर रहे थे शायद। इस सबके बीच नशामुक्त भारत की सशक्त नारियों को उनके बेरोजगार पतियों के हाथों लहूलुहान होने का एक दृश्य अकस्मात ही चौंधियाईं आंखों के सामने से तेजी से निकल गया। वहीं इलाज के अभाव में, मृत पत्नी को कंधे पर ले जाते उस युवक ने अकस्मात ही मेरे अंतस को झकझोर कर रख दिया। `सबका साथ सबका विकास` के नारे की हकीकत कुछ इस तरह मेरे सामने से गुजर जाएगी, ऐसी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी तेज कदमों के साथ इस अनछुए भारत को वहीं छोड़कर नज़रें झुकाकर मैं वापस इक्कीसवीं सदी के अपने सपनों के भारत की ओर लौट पड़ा।       #मनोज कुमार यादव Post Views: 373

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।