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खत वही फिर से…….
आंखों को सराबोर करने वाला,
पलकों को भारी करने वाला।
मिला तुम्हारा खत फिर से॥
निचोड़ देती है कल्पनाएं,
अपने अस्तित्व की कहानी।
बेजुबान जिज्ञासा की बौखलाहट से,
आत्मा अंदर ही अंदर दम तोड़ देती है।
अंतर्द्वंद से घबरा उठता है तब मन,
और उत्तर पाने की उत्कंठा से प्रत्युत्तर में,लिखती है-कुछ इस क़दर॥
सिसकियां घुंघरु की तरह गले
में जब छम-छम आती है।
मौसम की तरह तुम्हारे आने-जाने
का उसूल बेहतरीन है॥
कभी तेज हवा,
कभी बवंडर..
कभी पुरवाई,
कभी तेज धार…..
बारिश की टप-टप बूंद के समान,
अनायास वृष्टि॥
पवन चाल से आंचल की मुंडेर पर,
तरह-तरह घने मेघ मंडल..
समान गड़गड़ आते हुए॥
एक बिजली अचानक छोड़ जाते हो?
क्या यह खत तुम्हारा उदासीन नहीं ???
अथवा इसमें कोई दोष नहीं ??
महसूस नहीं होता क्यों ???
वह अब अपनापन तुम्हारे सुलझे हुए विचारों में,
दिखता क्यों नहीं वह ओज भरा ह्रदय?
जिस पर कहीं मेरी परिभाषा भी लिखी है।
आहत होती मेरी संवेदनाएं॥
पीड़ा की कुंठा में खुद से लड़ती दिन-ब-दिन,
मेरी अभिलाषाएं,क्या दोष है
इनका ??
जो भटक रही हैं,
किसी फलसफे की खोज में॥
बातों में बहुत कुछ है?
पर जज्बातों में वह बहुत कुछ है…
जो बयां नहीं होता है लफ्ज़ों से॥
मुस्कुराते तो मेरे होंठ सिर्फ खुदा
को खुश करने के लिए है,
पर खुदा यही समझता है कि,
मैं खुश हूं इस जिंदगी के हालात पर॥
जोड़ दो मेरी भी कुछ बातें,
इस खत के एक मोड़ पर।
यह खत किसी किताब के पन्ने जैसा है॥दोनों तरफ लिखा हुआ,
इस पर नजर ठहर जाए..
इसमें ऐसा कुछ नहीं लिखा है,
बस,अनकहे शब्दों की धूमिल-सी रेखा। .
यतीम से पन्ने पर एक चित्र उभरता है,
बेवजह शिकायत की एक नज्म भी छुपी है।
कराहते आंसूओं की तासीर में भीगे इस खत में॥
किसी के टूटते हौंसले की थोड़ी-सी झलक भी दिखेगी,
चंद लम्हें बरसात के भी दिखेंगे॥
जब भीगे थे चांदनी रातों में,
दो पंछी नील गगन की छत पर..
शबनम की चाहत में जुड़ गए थे-
दो फूल परस्पर आलिंगन भरकर॥
फिर अभी इस खत में रह गई है,
कुछ यादें..
कुछ वादे,
कुछ दुआएं..
कुछ मीठे पल की भीनी-भीनी
महक भी बची है।
चलो वह बरसात भी गई अब तो,
अब नदी के घाट पर सिर्फ रेत है..
भटकती हुई।
और कुछ दूर पर है एक टूटा हुआ किनारा॥
दूर देश से आए पंछी अब जा चुके हैं,
अपने वतन को,
सिर्फ रह गई है,उनके पैरों की निशानी।
और तुम्हारे एक खत में रेत कुछ लिपटी हुई॥
शेष फिर मिलने पर चेतन मन से॥
#हेमा श्रीवास्तव
परिचय : हेमा श्रीवास्तव ‘हेमा’ नाम से लिखने के अलावा प्रिय कार्य के रुप में अनाथ, गरीब व असहाय वर्ग की हरसंभव सेवा करती हैं। २७ वर्षीय हेमा का जन्म स्थान ग्राम खोचा( जिला इलाहाबाद) प्रयाग है। आप हिन्दी भाषा को कलम रुपी माध्यम बनाकर गद्य और पद्य विधा में लिखती हैं। गीत, ‘संस्मरण ‘निबंध’,लेख,कविता मुक्तक दोहा, रुबाई ‘ग़ज़ल’ और गीतिका रचती हैं। आपकी रचनाएं इलाहाबाद के स्थानीय अखबारों और ई-काव्य पत्रिकाओं में भी छपती हैं। एक सामूहिक काव्य-संग्रह में भी रचना प्रकाशन हुआ है।
ई-पत्रिका की सह संपादिका होकर पुरस्कार व सम्मान भी प्राप्त किए हैं। इसमें सारस्वत सम्मान खास है। लेखन के साथ ही गायन व चित्रकला में भी रुचि है।
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