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भौतिकता की चकाचौंध में,
दूर कहीं बहुत दूर
छूट गई है नैतिकता की,
नर्म,मुलायम,धवल चांदनी।
दॊलत,शोहरत पद-प्रतिष्ठा,
सम्मान के झूठे अहंकार से
चौंधियाई आंखें सादगी सरलता,
साफगोई और सदाशयता को
देखना ही भूल गई है।
प्रेम,दया, सहानुभूति,
ईमान-धरम, रिश्ते-नाते
आपसी भाईचारा,इन्सानियत
और परोपकार को देख सके
वो दृष्टि ही अब शेष नहीं रही।
रुपए-पैसे की अंधदौड़ ने,
छीन ली है रातों की
नींद और दिन का चैन।
नैतिकता वाली दृष्टि क्या गई,
उसके साथ चले गए मनोरम
दुनिया के सतरंगी सपने।
कहने को आज ये मन,
अमीरी ऒर समृद्धि के
शिखर पर है,लेकिन इसमें,
अभावों, मुफलिसी और
फांकामस्ती वाले निश्छल
प्रेम की प्यास
कहीं नजर नहीं आती।
आज पैसों से तिजोरी
भरी है,लेकिन पेट की भूख
और अन्न का स्वाद नदारद है।
#डॉ. देवेन्द्र जोशी
परिचय : डाॅ.देवेन्द्र जोशी गत 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकार के साथ ही कविता, लेख,व्यंग्य और रिपोर्ताज आदि लिखने में सक्रिय हैं। कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन इनका प्रिय शौक है। आप उज्जैन(मध्यप्रदेश ) में रहते हैं।
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Thu Jul 6 , 2017
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