सिडनी। ऑस्ट्रेलियांचल पत्रिका ने शनिवार को जूम के माध्यम से ऑस्ट्रेलियांचल फेसबुक लाइव द्वारा पावन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया। गोष्ठी का आयोजन संस्थापक और संपादक डॉ. भावना कुँअर और पत्रिका के संरक्षक प्रगीत कुँअर ने किया।
गोष्ठी ऑस्ट्रेलिया के जाने माने साहित्यकार विजय कुमार सिंह की स्वर्गीय पत्नी श्रीमती चमन बड़गोती जी की स्मृति में आयोजित की गई। इस गोष्ठी में देश-विदेश के प्रसिद्ध कवि एवं साहित्यकारों ने जुड़कर उनकी पत्नी को याद करते हुए अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए। लाईव कार्यक्रम में भी देश-विदेश से श्रोता जुड़े। वहाँ मौज़ूद सभी की आँखें नम थीं।
कार्यक्रम का प्रारम्भ गुरुग्राम से सुप्रसिद्ध कवियित्री इन्दु “राज, निगम ने माँ सरस्वती की सुन्दर आराधना से किया।
कार्यक्रम के आरंभ में यू. के. से जुड़े प्रतिष्ठित कवि आशुतोष कुमार ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपनी एक बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल पढ़ी जिस पर मंच से उनको हर शेर पर बहुत सराहना मिली-
कह के चिराग़ रोज़ जलाया गया हमें, ख़िदमत में तीरगी की लगाया गया हमें ।
इसके बाद यू. के. से ही जुड़े आशीष मिश्रा ने जीवन साथी के बारे में भावपूर्ण शब्द कहे कि जब लोग हमारे मध्य होते हैं वो दीयों की तरह प्रकाशमान होते ही हैं और जब वो हमसे दूर चले जाते हैं तो दिव्यमान हो जाते हैं जैसे दीपावली के दिए। अपनी रचना में उन्होंने कहा-
बुझे हुए दीपों से पूछो कितने रोशनदान बनाए
अँधेरों को दूर भगाकर घर में कितने राम सजाए।
फिर प्रगीत कुँअर ने चमन जी से जुड़े अपने संस्मरण सुनाए और बताया कि किस तरह वो विजय कुमार सिंह जी की लेखन में प्रेरणा, समालोचक और उनकी पहली श्रोता रहीं। उसके बाद विजय कुमार सिंह ने अपनी पत्नी के जाने का ग़म भी साझा किया और उनके लिये लिखा अंतिम गीत सभी को सुनाया जिसे सुनने के बाद उनकी पत्नी ने अंतिम साँस ली थी। उन्होंने अपनी पिछली पुस्तक “उसका अंतिम गीत” अपनी पत्नी को ही समर्पित की। गीत के बोल थे-
प्राण बसे हो मेरे चेतन,
तुम ही तो मेरे अंतर्मन
एक तुम्हीं से मन मिलता है,
एक तुम्हीं से सब खिलता है।
ये सुनकर वहाँ उपस्थित सभी की आँखें नम हों गईं।
जर्मन से प्रतिष्ठित कवियित्री डॉ. शिप्रा शिल्पी ने बहुत सकारात्मक संदेशों से भूमिका बाँधी और अपने आँसुओं को सँभालते हुए भारी मन व भरे गले से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए ये भावपूर्ण रचना पढ़ी-
नेह बंधन टूटता जब टूटती है हर लड़ी
टूटता है मन का दर्पण हैं निकलते प्राण भी…
साथ ही उन्होंने डॉ. भावना कुँअर और प्रगीत कुँअर के सौम्य व्यवहार और उनकी मुस्कान को लेकर एक मुक्तक उनको समर्पित किया-
न कोई क़ीमती सामान शफ़्फ़ाफ़ व्यवहार रखते हैं,
मधुर मुस्कान चेहरे पर अलग किरदार रखते हैं।
निखर जाती है इनकी शख़्सियत इस बात से ख़ुद ही
ज़ुबाँ मीठी सभी के प्रति हृदय में प्यार रखते हैं।।
ऑस्ट्रेलिया के जाने माने उपन्यासकार संजय अग्निहोत्री ने विजय कुमार के साथ में बिताए पलों को याद किया और कहा कि जब हम किसी अजनबी से मिलते हैं तो कैसा लगता है-
किसी अजनबी से मिलके अक्सर लगा था ऐसा
काश ये वैसा होता या तो न ही मिला होता।।
किंतु जब वो विजय सिंह जी से मिले तो उनके लिए उनके जो भाव मन में उपजे वो इस प्रकार थे-
रूबरू तुझसे हुआ जब से आया ख़्याल तब से
क्या ख़ूब समाँ होता जो मैं तेरे जैसा होता।
आगरा के प्रतिष्ठित कवि अनिल शर्मा ने चमन जी को याद किया और विजय कुमार सिंह के दर्द को अपना ही दर्द माना क्योंकि उन्होंने भी अपनी पत्नी को कोरोना में खो दिया था। अपनी पत्नी के चले जाने के दर्द को उन्होंने कुछ इस तरह उकेरा-
सब लगभग पहले जैसा चल रहा है
बस एक तुम नहीं हो दुनिया में
सच में मैं झूठ कहता था कि
ज़िंदगी तुम्हारे बिना नहीं है।
बुल्गारिया से जुड़ी प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. मोना कौशिक ने बुल्गारिया के प्रसिद्ध कवि पियो यावोरोव की रचना जो उन्होंने अपनी प्रेमिका के लिए लिखी थी “दो सुंदर नयन” का हिंदी अनुवाद किया और उसे सुनाया-
दो सुंदर नयन
आ संग नाच लें झूम लें
वे दो सुंदर नयन
रात का पहला पहर
अभी अभी आया है
मन ने ली है समाधि
और ज्योत ने अपना छोड़ दिया है तन…
उन्होंने चमन जी को श्रधासुमन अर्पित करते हुए अपने लिखे कुछ हाइकु भी सुनाए।
ऑस्ट्रेलियांचल पत्रिका के संरक्षक प्रगीत कुँअर ने चमन जी को अपने श्रद्धा सुमन अपनी लिखी ग़ज़ल से कुछ इस प्रकार से अर्पित किए-
आँसुओं की ये नदी राह जहाँ छोड़ती है
चाहे जिस और से गुज़रे वो निशाँ छोड़ती है…
साहित्यिक संस्था परंपरा की संरक्षक एवं सुप्रसिद्ध कवियित्री इन्दु “राज” निगम ने चमन जी को भाभी कहते हुए भाभी को माँ के समान बताया और उनको अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए-
मेरे आँसू पी लेती हो चुपके-चुपके आकर माँ
मुझको आस बँधा देती हो चुपके-चुपके आकर माँ..
साहित्यिक संस्था परंपरा के संस्थापक और सुप्रसिद्ध कवि श्री राजेंद्र राज निगम ने अपने बहुत सुंदर नवगीत के साथ ही अपने सुप्रसिद्ध गीत द्वारा कुछ इस प्रकार अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए-
ऐ मेरे नादान दिल तू बोल आहिस्ता जरा
गीत सोता है मेरे काँधे पे सर रखे हुए…
ऑस्ट्रेलियांचल हिन्दी पत्रिका की संस्थापक, संपादक एवं ख्याति प्राप्त कवियित्री डॉ० भावना कुँअर ने बताया कि विजय कुमार सिंह की मनःस्थिति उस वक़्त कैसी रही होगी जब डॉक्टर ने उनको कहा कि अब चमन जी के पास ज़्यादा समय नहीं है। डॉ० भावना कुँअर ने उस दर्द को एक मुक्तक में इस प्रकार ढालते हुए चमन जी को याद किया-
वो पुराने से पल, फिर से दोहराइए।
छोड़ के हमको तन्हाँ ना यूँ जाइए।
कह रहें हैं अधर, मौन रहकर यही।
प्रीत के गीत को, फिर जरा गाइए।
और इसके बाद अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए-
कितना तुझको याद किया है हमने इस तन्हाई में
जाने कितने अश्क़ बहाए हैं तेरी रुसवाई में…
कार्यक्रम के अंत में सबने बारी-बारी से अपनी प्रतिक्रिया दी और स्मृति कार्यक्रम को आयोजित करने की दिल से प्रशंसा की। सबने कहा कि साहित्यकार की साधना तो सराहनीय है ही पर साथ में उनके परिवार के योगदान को भी हमें नहीं भूलना चाहिए और उनके इस योगदान को उजागर करते हुए इस तरह के कार्यक्रम समय-समय पर होते रहने चाहिए।