व्यंग्य- लोग क्या कहेंगे

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लोग क्या कहेंगे का भूत अच्छे अच्छों को गुलाटी खाने पर मजबूर कर देता है और वह बंदर बना उछल कूद करता अपने ही सर के बाल नोचता रह जाता है। यह करोगे तो लोग क्या कहेंगे? वह करोगे तो लोग क्या कहेंगे ?इस चक्कर में अच्छा भला आदमी दूसरों की टांगों से चलने लगता है ।अपना सीधा साधा रास्ता भूल कर लोगों के बताए रास्तों पर चलते हुए बेचारा कहीं का नहीं रहता ।इस भूल भुलैया में उलझाने वाले लोग आखिर हैं कौन जो सबकी ठेकेदारी करने में ही अपना टाइम पास करते रहते हैं ?अजी ये चार लोग वही तो हैं जिनका कहीं कोई अता पता नहीं है फिर भी उनका भूत हर दम सर पर सवार रहता है।
अक्सर नौकरी करने वालों को एक इतवार की ही छुट्टी तो मिलती है मगर पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले बैठी इस नाशपीटी महामारी ने तो सब की छुट्टी कर दी है ।अब तो हर दिन घर से काम करो यानि “वर्क फ्रॉम होम”तय हो गया है ।अब हर दिन इतवार हो गया है ।नौकरों को बेरोजगार होकर घर बैठना पड़ गया हैऔर अच्छे खासे हुकुम दागते अफसरों को रसोई में खटते देखा जा रहा है।आखिर मरता क्या न करता बेचारा पति !भले अफसर हो या बाबू घर पर रह कर अगर पति काम में हाथ नहीं बंटाएगा तो लोग क्या कहेंगे? घर में लोग क्या कहेंगे का डंडा सर पर सवार है और बाहर मित्रों और रिश्तेदारों के तीर बरसते रहते हैं ।सबके अपने अपने खाँचे हैं जिनमें वे खुद अपने को नहीं ,दूसरों को फिट करने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं।अब तो सारे लोग इसी चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं कि लोग क्या कहेंगे?उन्हे चिंता इस बात की नहीं है कि हम खुद क्या चाहते हैं ?दिन रात फिक्र बस यही लगी रहती है कि अच्छे पति ,अच्छे पिताऔर अच्छे बेटे बने रहने के लिए न चाह कर भी पीर, बावर्ची, भिश्ती खर बने रहना पड़ता है !कभी रेडियो पर भूले बिसरे गाने सुनते हुए ऐसा भी होता है कि कॉलेज के दिनों के रोमांस की याद दिलाता कोई मधुर गीत बज उठता है।हाथ वॉल्यूम तेज करने की हिमाकत पर बैठते हैं और तभी पत्नी की दहाड़ सुनकर आसमान से धरती पर पटक दिया जाता है ,यह कह कर कि इतनी उम्र हो गई है ।कुछ तो शर्म करो ।आस पास के लोग क्या कहेंगे?अरे भई ये शरीफों का मोहल्ला है ।यानी कि शरीफ होने के लिए हमें दिल पर पत्थर रख लेना चाहिए। माना कि संगीत हमारी कमजोरी है और कभी गलती से ऊँचे सुर में कोई धुन गुनगुना बैठते हैं तो तुरंत यह कह कर धमका दिया जाता है कि जरा आहिस्ता से।लोग क्या कहेंगे?
एक रोज हुआ यूं कि बड़े दिनों से ड्राइंग रूम में बिछे कालीन की धूल झाड़ने की मंशा से हम कालीन आँगन में ले गए और जैसे ही हमने उसकी पिटाई शुरू की कि दनदनाते हुए श्रीमती जी आ गईं और बेतहाशा बरस पड़ीं।अरे कुछ तो शर्म करो। यह बाहर आ कर ऐसा तमाशा करने की क्या जरूरत पड़ गई ?लोग क्या कहेंगे।अच्छी मुसीबत है साहब हमारी तो। अच्छा करो तो भी बुरा और ना करो तो भी ,डंडे तो हमारे ऊपर ही बरसते हैं फिर वह इनके हो या उनके। बेटे ने भी आग में घी डालते हुए कह दिया- क्या पापा आप भी कमाल हो ।लोग क्या कहेंगे ?हमारी सुबह की सैर क्या बंद हुई। स्वस्थ रहने के लिए हमने छत पर जाकर टहलना शुरू कर दिया।अब ये भी हमारी गलती है।जिसे देखो छत पर हाथ पैर हिला रहा है,योगा कर रहा है । अपनी अपनी छतों पर जो चाहो सब करो। मगर हम कुछ करें तो पड़ोसियों के साथ पत्नी को भी शंका होने लगती है कि जरूर कहीं ताका झांकी कर रहे हैं। ताका झांकी करने का आरोप जबरदस्ती ठोकने वाले यह लोग अपने गिरेबान में क्यों नहीं झांकते ।छत पर जाओ मगर चड्डी बनियान में नहीं। लुंगी बनाइन में भी नहीं। पूरे कपड़ों में रहो ।खास ध्यान रखो वरना लोग क्या कहेंगे।इसी डर से अब तो वेशभूषा का खास ध्यान रखना पड़ता है वरना लोग क्या कहेंगे ?हमारे पापा जी अलग भुनभुनाते रहते हैं ।अरे।कुछ तो शर्म करो। बच्चे बड़े हो गए हैं और तुम्हें यह नई उम्र के लोगों की तरह अधनंगा रहने का खब्त सवार हुआ है।पजामे की जगह हर वक्त ये नेकर क्यों पहने रहते हो ?लोग क्या कहेंगे? सब्जी वाला, दूध वाला, बिजली वाला, ऑनलाइन डिलीवरी बॉय हो या अलाने फलाने का घर पूछने वाला कोई अपरिचित घंटी बजते ही दौड़ लगाने की अघोषित जिम्मेदारी हमारी ही है ।भले ही उस वक्त टीवी पर क्राइम सीन के सस्पेंस भरे क्लाइमेक्स में हम पूरी तरह डूबे हुए हों। उठ कर भागो।क्योंकि कायदे से तो हमें ही कुछ सोचना चाहिए ,वरना हमीं को चार बातें सुनाने को घर में हर कोई तैयार ही बैठा रहता है।
ऐसा भी होता है कि कभी हम दोपहर की मीठी नींद में डूबे हैं ऐसे में जोर से हिला दिया जाता है और शराफत की ड्रेस में फिट होकर ड्राइंग रूम में उपस्थित होने का फरमान जारी कर दिया जाता है। कसम से ऐसे वक्त खुद के ही बाल नोंचने का मन करने लगता है। उस समय आने वाला भले कोई परिचित भी क्यों न हो वह किसी दुश्मन से कम नजर नहीं आता। फिर भले ही वह पत्नी का सगा भाई ही क्यों न हो जो दूसरे शहर से ऑफिस के काम से 2 दिन के लिए तशरीफ लाया है। अब अगर उसके सामने ढंग से प्रस्तुत नहीं हुए तो मायके में लोग क्या कहेंगे ?
किसी परिचित का जन्मदिन हो या शादी, महंगी गिफ्ट तो देना ही है !पत्नी भुनभुनाती है पिछली पार्टी में पहनी साड़ी अब नहीं पहनी जाएगी। लोग क्या कहेंगे?
बर्थडे पर घर पर केक बनाया जा सकता है मगर ब्रांडेड दुकान से ही लाना पड़ेगा वरना लोग क्या कहेंगे?
लिपस्टिक का रंग जरा गहरा हो गया,अरे लोग क्या कहेंगे? मम्मी जी ने इस उमर में मेकअप कर लिया ,आस-पड़ोस के लोग क्या कहेंगे? माताजी परेशान हैं कि टेलर ने गहरे गले का ब्लाउज सीं दिया ।अब इस उमर में यह सब ?लोग क्या कहेंगे ?
अब सवाल ये उठता है कि आखिर हैं कौन ये लोग? और साहब किसी के फटे में टांग डालने के सिवा इन्हे और कोई काम धाम नहीं है क्या?
इनके आँख कान बस यही देखने सुनने में लगे रहते कि—
ये रिटायर्ड वर्मा जी मिसेज पंडित से सड़क पर खड़े होकर क्या बात कर रहे थे?
ये कपूर साहब का बेटा रुखसाना को बाइक पर कल कहाँ लेकर जा रहा था?
कल तो गीता की नई बहू ने जींस-टॉप पहना था।
आज तो सुबह पार्क में अपने सक्सेना जी पाँच नं.वाली पिंकी के पास बेंच पर बैठे थे ?
अरे ये जो मेहता जी हैं वो अभी भी बेटी के यहाँ टिके हुए हैं।अब इस उमर में बेटी के घर इतने दिन रुकना अच्छा लगता है क्या ,लोग क्या कहेंगे ?
भई अच्छी मुसीबत है यह तो।यह करो ,वो मत करो का राग अलापने वाले ये दूसरों की जिंदगी का ठेका क्यों ले लेते हैं ।यह अदृश्य हँसने वाले ,टोकने वाले, बातें बनाने वाले ,इशारे करने वाले,बात बेबाक रास्ते सुझाने वाले,अच्छा बुरा सलीका सिखाने वाले आखिर हैं कौन? इनके हण्टर का डर दिखा दिखा कर हमारे दिमाग में भूसा भरने का काम तो हमारे आस पास के अपने ही लोग करते हैं ।ये वे ही लोग होते हैं जिनका दिल वही सब करने को मचलता रहता है जिसे दूसरों करते देख कर इन्हे आग लगती है।करना तो सभी मन की चाहते हैं मगर वही सवाल वक्त बेवक्त आकर सबके सर पर खड़ा हो जाता है कि लोग क्या कहेंगे ?

#डॉ. पद्मा सिंह

इन्दौर, मध्यप्रदेश

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