कविता- भगवान बुद्ध

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आओ, आओ, एक बात बतायें,
गौतम बुद्ध की कथा सुनायें,
कहतीं थीं दादी और नानी,
उनकी कहानी मेरी ज़ुबानी।।

एक दिन गौतम बुद्ध देखो,
बैठे थे बिल्कुल चुपचाप,
उनको इस दशा में देखकर,
शिष्य हो गए बहुत हताश।।

लगे सोचने गुरुवर की,
तबियत खराब हो गई,
या फिर अनजाने में हमसे,
कोई भारी भूल हो गई।।

बार-बार तो सभी शिष्य,
गुरुवर से हैं पूछते,
किंतु गुरुवर आज देखो,
कुछ भी है न बोलते।।

तभी अचानक दूर से,
एक आवाज़ गूंज गई,
आज सभा में बैठने की,
अनुमति क्यों नहीं मुझे मिली??

बुद्ध आँखें बंद करके,
ध्यान मग्न हो गये,
फिर से वह शिष्य चिल्लाया,
कुछ नहीं क्यों बोलते??

इसी बीच एक उदार शिष्य भी,
बीच में ही बोल पड़ा,
उसे सभा में आज क्यों,
आसन देखो नहीं मिला।।

बुद्ध ने आँखें खोलीं,
और शांत भाव से यह कहा,
यह व्यक्ति अछूत है,
इसलिए आसन नहीं मिला।।

इस बात पर सभी शिष्य,
एक स्वर में बोलने लगे,
हमारे आश्रम में तो कभी,
छुआछूत होते नहीं।।

तब गुरुवर ने आँखें खोलकर,
अपनी बात आरंभ की,
वह व्यक्ति तो आज देखो,
है बिल्कुल अछूत ही।।

बोले गुरुवर, मेरी बात,
ध्यान से है सब सुनो,
क्रोध करके अपना जीवन,
तुम नष्ट तो न करो।।

क्रोध से जीवन की देखो,
एकाग्रता भंग होती,
और उसके हाथों से,
मानसिक हिंसा है होती।।

इसलिए व्यक्ति जब देखो,
क्रोधित अवस्था में होता,
उस समय वह व्यक्ति तो,
अछूत के समान ही होता।।

इसलिए कुछ समय तक
उसे यह करना चाहिए,
कुछ समय एकांत में,
खड़े रहना चाहिए।।

गौतम बुद्ध की बातों को,
शिष्य ने है सुन लिया,
फिर वह पश्चाताप की,
अग्नि में जलने लगा।।

भगवान बुद्ध के चरणों में,
जाकर वह गिर पड़ा,
फिर से क्रोध न करने का,
निश्चय भी है कर लिया।।

क्रोध करने से तन, मन,
और धन की हानि होती,
इससे ज़्यादा हानिकारक,
और कोई बात नहीं होती।।

क्रोध करने से व्यक्ति,
अनर्थ भी है कर देता,
अपने साथ औरों को,
दु:खी भी है कर देता।।

भगवान बुद्ध के ज्ञान से,
जीवन भी सफल होता,
हमारी कई व्यथाओं का,
निवारण भी देखो होता।।

#साधना छिरोल्या
दमोह, मध्य प्रदेश

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