परिचर्चा – हिन्दी के प्रचार-प्रसार में कवि सम्मेलनों का योगदान

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परिचर्चा संयोजक-
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

कविता के इतिहास से इस बात की गवाही मिलती है कि हर युग में कविता ने जनजागरण का कार्य किया है। कविता का मूल स्वभाव ही जनतंत्र की स्थापना और उनका जागरण है। 1923 में गयाप्रसाद सनेही जी द्वारा प्रारम्भ हुई कवि सम्मेलन परम्परा आज सौ सालों के बाद भी लगातार जनता को जागृत कर रही है। उस परम्परा में जनता का मनोरंजन भी एक भाग रहा है किन्तु मूल स्वभाव जागरण है। जागरण के कारण ही हिन्दी फिल्मों, गीतों व कवि सम्मेलनों ने देशभर में हिन्दी का बहुधा प्रचार किया है।
इसी अवदान को रेखांकित करने के उद्देश्य से मातृभाषा डॉट कॉम द्वारा डिजीटल परिचर्चा में वरिष्ठ एवं विद्वतजनों ने अपने विचार रखें।

फालना, राजस्थान निवासी सुप्रसिद्ध कवियित्री डॉ. कविता किरण जी के अनुसार ‘भाषा के प्रति प्रेम को लेकर मुझे भारतेंदु जी का एक अत्यंत सुंदर दोहा याद आ रहा है-
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति कौ मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय कौ सूल”
भारतीय कला एवं संस्कृति किसी न किसी रूप में वाचिक संस्कार से सिंचित रही है। साहित्य की वाचिक परम्परा में हिंदी कवि सम्मेलनों ने निसंदेह हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
कहा गया है-
“जहाँ न पहुंचे रवि,वहाँ पहुँचे कवि”
वाचिक परम्परा के तहत कवि सम्मेलनों के माध्यम से कवियों ने देश के अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में जा जाकर, वहाँ अपनी रोचक, मनोरंजक कविताएं सुनाकर, गा गाकर जनता में हिंदी के प्रति प्रेम एवं आकर्षण पैदा किया है। अपनी प्रभावपूर्ण प्रस्तुति एवं संदेशपरक रचनाओं के माध्यम से जनता को हिंदी सुनने, समझने और बोलने पर विवश किया है। उनमें काव्य प्रेम की अलख जगाई है।
हिंदी को जन जन के मन की व बोलचाल की भाषा बनाने में तथा हिंदी के प्रति रुचि जगाने में, साथ ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को प्रचारित- प्रसारित करने में निश्चित रूप से कवि सम्मेलनों का बहुत ही बड़ा योगदान है। इसमें कोई संदेह नहीं है।’


गौतमपुरा निवासी राष्ट्रवादी ओजस्वी कवि पंकज प्रजापत जी ने कहा कि ‘1923 में गया प्रसाद जी स्नेही द्वारा कानपुर में पहला हिन्दी कवि सम्मेलन आयोजित किया गया था और उस मान से यह हिन्दी कवि सम्मेलनों का शताब्दी वर्ष है । इन सौ वर्षों में हिन्दी कवि सम्मेलनों ने अनेकों उतार चढ़ाव देखें है। कभी मंचो पर श्रधेय रामधारी सिंह जी दिनकर के मुख से धधकती ज्वाला तो कभी काका हाथरसी के हास्य की निर्मल गंगा श्रोताओं को मदमस्त करती आई है। हिंदी कवि सम्मेलनों ने ना केवल भाषा के रूप में हिन्दी के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है वरन हिंदी साहित्य के प्रति भी लोगो के मन मे श्रद्धा और उमंग पैदा की है। इन सौ वर्षों में हिंदी कवि सम्मेलन ना केवल हिंदी भाषी प्रदेशो में बल्कि दक्षिण भारत और पूर्वांचल की सीमाओं को लांघते हुवे सात समंदर पार रहने वाले भारतीयों अथवा हिन्दी भाषियों की आत्मा को भी तृप्त कर आये है। वर्तमान में सोश्यल मीडिया का आधुनिक युग होने के बावजूद भी कवि सम्मेलनों में उमड़ने वाली भीड़ इस बात की सूचक है कि कवि सम्मेलन हिन्दी को लेकर आज भी उतने ही संजीदा है जितने आज से सौ वर्ष पहले थे।’

इन्दौर, मध्यप्रदेश के रहने वाले सुप्रसिद्ध गीतकार गौरव साक्षी ने बताया कि ‘कवि सम्मेलन हिन्दी साहित्य की वह विधा है जो भाषाई संस्कारों को आम जन मानस के हृदय में रोपित करने का कार्य कर रही है।
समाज का वह वर्ग जो अपनी आजीविका के चलते अथवा अन्य सामाजिक अथवा पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते साहित्य में रुझान नहीं ले पाता, कवि सम्मेलन अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक उकृष्ट साहित्य को सरलीकृत कर पहुँचने का कार्य करता है। जिससे समाज के प्रत्येक व्यक्ति के मन में हिन्दी भाषा के प्रति सम्मान और साहित्य के प्रति रूचि पैदा होती है।’

परिचर्चा के निष्कर्ष में यह ज्ञात है कि हिन्दी के समुचित विकास, विस्तार और प्रचार में हिन्दी कवि सम्मेलनों की भूमिका महनीय है।यथायोग्य समय पर कवियों ने राजनीति को भी सहारा दिया, और इस राष्ट्र को विकसित होने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। यह क्रम अनवरत चलता रहें।

समय – समय पर मातृभाषा डॉट कॉम इस तरह के विभिन्न विषयों पर परिचर्चा एवं विमर्श सहित विचार आमंत्रित कर बौद्धिक समृद्धता के लिए प्रयत्नशील रहेगा।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।