इत्तेफ़ाक़ नहीं था…..

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इत्तेफ़ाक़ नहीं है ,था
तुम्हारा इस कदर
मेरे जीवन में आना
ना जाने नियति ने
कितने कितने गुढ से
रहस्यों से
तुमको हमसे मिलाने के जत्न
किए होंगे
हमारे तुम्हारे मन के मनोभावों को
कितना पढ़ कर
आत्ममंथन किया होगा
हमारे रचियेताऔ ने
ब्रह्मांड में विद्यमान
किंतु अलग-अलग भटक रही
उर्जाओ का एकाकार करने में
वह इत्तेफाक ना होकर
एक सुखद संयोग रहा होगा
जब नियति ने हमें एक दूसरे को
सौंपा होगा
जानती होगी
हमारे कई जन्मों के इंतजार को
हर क्षण की बेकरारी को
लिखना चाहती होगी
कुछ नए से अध्यायों को
इतिहास के झरोखों की खातिर
रचना चाहती होगी
कुछ अनसुने से किस्सों को
सच है ना
वह सुखद एहसास
जो हमारी मधुर स्मृतियों का स्पंदन है
हमारी अमानत है
वह सिर्फ संयोग ही होगा
जो दो आत्माओं का
योग करके
एक कर गया होगा ।

स्मिता जैन

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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