महिला अधिकार की जमीनी हकीकत!

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बड़ा दुर्भाग्य है कि हमारा समाज अत्याचार एवं शोषण से अपने आपको मुक्त नहीं कर रहा है। हमारा
समाज यह तनिक भी नहीं सोच रहा है कि आज जो हम कर रहे हैं वह सही है अथवा गलत…? जबकि आज
हम शिक्षित एवं जागरूक तथा सभ्य सामाज की बात कर रहे हैं। लेकिन शायद यह सभी शब्द पर्दे के बाहर की
बात है। ऐसा इललिए कि अगर हकीकत को देखने के अगर हम समाज की चाल,चित्र एवं चरित्र को देखने
प्रयास करते हैं तो बहुत ही भयावक तस्वीर उभरकर सामने आती है। एक ऐसी तस्वीर जोकि आत्मा को पूरी
तरह से हिला देती है। मन विचलित हो जाता कि क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है…? क्या आज का मानव
इतना निर्दयी हो चुका है…? क्या आज का मानव इतना स्वार्थी हो चुका है…? चुँकि ऐसे सवाल उभरकर सामने
आते हैं जिसे देखकर मन काँप उठता है। शिक्षित,जागरूक एवं सभ्य सामाज के प्रचार-प्रसार एवं गुणगान के
युग में हकीकत में क्या हो रहा है इसे देखने की जरूरत है। जिसको समझने के लिए कुर्सियों से उतरकर महलों
से बाहर निकलकर धरातल पर वास्तविक जीवन के अंदर झाँककर देखने की जरूरत है।
शोषण रूपी अपराध को बढ़ावा मिलने का एक मुख्य कारण यह भी है सरकारी अमला कुर्सी से उतरकर
बंद गलियों में झाँकने की जहमत तक नहीं उठाता। यदि शब्दों को बदलकर कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि
सरकारी अमला उन बंद गलियों में जाना ही नहीं चाहता जहाँ वास्तव में अंधियारा है। क्योंकि जहाँ अंधियारा है
किरण एवं प्रकाश की जरूरत वहीं पर है। न कि घंटाघर के मुख्य चौराहे पर। सत्य यह है कि सरकारी अमला
जब भी निकलता है तो मुख्य मार्ग से होकर वाहन से तीव्र गति से गुजर जाता है। जबकि होना यह चाहिए कि
उन बंद गलियों में रहने वाली जिन्दगियों के अंदर की हकीकत को झाँककर देखना चाहिए। लेकिन ऐसा हो नहीं
पाता। सरकारी अमला बड़ी-बड़ी गाड़ियों से उतरकर बंद गलियों तक जाने की जहमत नहीं उठाता इस कारण से
शोषण दिन प्रतिदिन और तेजी के साथ बढ़ता चला जा रहा है। समाज में न्याय एवं कानुन का एक माहौल ही
स्थापित नहीं हो पा रहा। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि सरकारी अमले की लापरवाही। सरकारी अमला
अगर पूरी तरह से चुस्त दुरुस्त हो जाए तो समाज से शोषण रूपी राक्षस का पतन होना निश्चित है। लेकिन
ऐसा होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा।
आज के समय में एक बार पूरी तीव्रता के साथ जिम्देदारों को अपने कानों को खोल लेना चाहिए क्योंकि
कोरोना महामारी के दौरान देश में असमय बहुत जानें चली गईं असमय मृत्यु से बहुत से नौजवान साथी हमारे
बीच अब नहीं रहे वह सदैव के लिए हमारे बीच से चले गए। जोकि अनाथ मासूम बच्चों को छोड़ गए अपनी
विधवा को छोड़ गए। जिसका अब इस संसार में कोई सहारा नहीं रहा। इस स्वार्थ भरी दुनिया में शोषण रूपी

राक्षस प्रत्येक स्थानों पर मुखौटा बदलकर खड़े हुए हैं। जिनके लिए मानसिक एवं आर्थिक शोषण करना कोई
नई बात नहीं है। इस महामारी में अचानक हुई मौतों के कारण बहुत बड़ी तबाही फैल गई। क्योंकि जाने वाला
असमय इस संसार से चला गया। जाने वाले का सारा कार्य अधूरा रह गया। क्योंकि उसको अचानक यमराज ने
अपने मुँह में ले लिया जिस कारण वह अपनी संतानों के लिए सारे कार्य को मजबूती नहीं दे सका कहीँ
व्यवसाय में उसने पैसा लगाया तो कहीं परिवारिक विश्वास में भूमि एवं आवास बनाया लेकिन अचानक इस
संसार से चले जाने के कारण उसको अपने नाम पर आधारित नहीं कर पाया। क्योंकि नाम होना ही कानूनी
आधार माना जाता है जिसमें न्यायालय साक्ष्य देखता है। साक्ष्य के आभाव में मुख्य रूप से परिवारिक संपति
एवं मित्रता पूर्वक व्यवसाय अब पूरी तरह से उलझ गया है। जिसमें सामने वाले व्यक्ति की अनुकंपा जैसी
स्थिति प्रकट हो गई है। जिसमें अनाथ बच्चे एवं छोटी बहन समान विधवाएं निराशा की भरी हुई आँखों अपनी
संपत्ति को ही देख रही हैं जिसमें संपत्ति मिल पाना दूर की कौड़ी दिखाई दे रहा है। इस जोखिम भरे समय में
अनाथ बच्चों एवं विधवाओं की आँखो से सामने पूर्ण रूप से अंधेरा छाया हुआ है। इसलिए सरकार को इस क्षेत्र
में कदम उठाने की जरूरत है। क्योंकि अगर इस क्षेत्र में किसी प्रकार की चूक हो गई तो समाज में महिलाओं
एवं अनाथ बच्चों का शोषण बहुत बड़े स्तर पर होना आरंभ हो जाएगा।
क्योंकि महिलाओं के अधिकारों का हनन एवं मानसिक शोषण तथा आर्थिक शोषण होना यह बहुत ही
दुखद बात है लेकिन इसके प्रति अब तक जमीनी स्तर पर कार्य हो नहीं पा रहा। अधिकतर आवाजें गरीबी एवं
भुखमरी तथा विवशता के बोझ के तले दबकर घुट जाती हैं। इसलिए कि वह कानून की चौखट का चक्कर
लगाने में असमर्थ हैं। उनके पास इतना सामर्थ ही नहीं है कि वह न्यायालय की शरण में जाकर अपनी बात
रख सकें और अपने अधिकार की लड़ाई लड़ सकें, क्योंकि यहाँ तो दो जून की रोटियों का प्रबंध करने में सुबह
से लेकर शाम हो जाती है। यह पापी पेट की आग बुझाने में पूरा दिन निकल जाता है। अब सवाल यह उठता
है कि न्यायालय का चक्कर आखिर कोई पीड़िता लगाए तो कैसे लगाए…? न्यायालय का चक्कर लगाना कोई
एक दिन का कार्य नहीं है कि एक दिन मासूम बच्चों को भूखा छोड़कर अपने अधिकार की लड़ाई के लिए
न्यायालय का चक्कर लगा लिया जाए और मामला हल हो जाए। क्योंकि न्यायालय की प्रक्रिया तो बहुत ही
लंबी है साथ ही न्यायालय तक जाने के लिए जागरुकता और साहस के साथ-साथ धन की महत्वपूर्ण
आवश्यकता होती है जोकि गरीबी के बोझ के तले दबे हुए अनाथ संतानों के पास है ही नहीं। यदि धन ही होता
तो समस्या ही क्यों होती। धन न होने के कारण ही तो सभी प्रकार ही समस्याएं हैं। संविधान एवं कानून के
द्वारा मिलने वाले अधिकार तो कागज के पन्नों से लेकर अधिकारियों की कुर्सी तक सीमित रह जाते हैं सत्य
यही है कि सभी प्रकार के नियम कायदे धरातल पर पूरी तरह से पहुँच ही नहीं पाते। समाज में फैले हुए अनर्थ
को मिटाने के लिए संविधान ने तो ढ़ेर सारे अधिकार दिए हैं लेकिन उनको लागू करने के लिए जिन जिम्मेदारों
को यह जिम्मेदारी दी गई उनकी वास्तविकता किसी से भी छिपी हुई नहीं है।

संविधान का अनुच्छेद 23 नारी की गरिमा की रक्षा करते हुए उनको शोषण मुक्त जीवन जीने का
अधिकार देता है। महिलाओं के साथ किसी प्रकार का शोषण एवं जबरदस्ती करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा
करने वालों के लिए भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत सजा का प्रावधान है। संसद ने अनैतिक व्यापार निवारण
अधिनियम,1956 पारित किया है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 361, 363, 366, 367, 370, 372, 373 के
अनुसार ऐसे अपराधी को सात साल से लेकर 10 साल तक की कैद और जुर्माने की सजा भुगतनी पड़ सकती
है।
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 जिसके तहत वह सभी महिलायें जिनके साथ किसी भी तरह घरेलु हिंसा
की जाती है उनको प्रताड़ित किया जाता है वह सभी पुलिस थाने जाकर F.I.R दर्ज करा सकती है तथा
पुलिसकर्मी बिना समय गवाएँ प्रतिक्रिया करेंगे। दहेज़ प्रथा भी गंभीर अपराध है। 1961 से लागू इस कानून के
तहत बधू को दहेज़ के नाम पर प्रताड़ित करना भी संगीन जुर्म है| अनुच्छेद 21 एवं 22 दैहिक स्वाधीनता का
अधिकार प्रदान करता है। हर व्यक्ति को इज्जत के साथ जीने का मौलिक अधिकार संविधान द्वारा प्रदान
किया गया है। अपनी देह व प्राण की सुरक्षा करना हरेक का मौलिक अधिकार है।
कानून 2005 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है कि पिता के उत्तराधिकार को बेटे और बेटी में
समान रूप से बांटा जाए यह व्यवस्था सितंबर 2005 के बाद प्रॉपर्टी के सभी तरह के बंटवारों में लागू होगी
बेटियों को बराबरी का दर्जा सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से दिया है। सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश
परिवार और समाज में बेटियों की स्थिति को पहले से बेहतर करने में सहायक हो सकता है युवती चाहे
विवाहित हो या अविवाहित दोनों ही हालातों में संपत्ति का बराबर बंटवारा लाभदायक होगा। अक्सर देखा जाता
है कि पिता के निधन के पश्चात भाई अपनी बहनों के साथ बुरा व्यवहार करने लगते हैं उन्हें जीवन यापन
करने के लिए खर्च देना बंद कर देते हैं ऐसे में उस स्त्री का अपना धन उसके काम आएगा इसके अलावा
विवाह के पश्चात भी अगर किसी महिला को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ता है तो वह अपने भाई से अपना हक
मांग सकती है| महिला सशक्तीकरण से जुड़े सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और कानूनी मुद्दों पर कानून अति
गंभीर है। वैश्विक स्तर पर नारीवादी आंदोलनों और यूएनडीपी आदि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने महिलाओं के
सामाजिक समता, स्वतंत्रता और न्याय के राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी
है।
महिला सशक्तीकरण को बेहद आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाएं
शक्तिशाली बनती है जिससे वह अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती है और परिवार और समाज में
अच्छे से रह सकती है। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना महिला
सशक्तीकरण है। इसमें ऐसी ताकत है कि वह समाज और देश में बहुत कुछ बदल सके। वह समाज में किसी
समस्या को पुरुषों से बेहतर ढंग से निपट सकती है। विकास की मुख्यधारा में महिलाओं को लाने के लिये
सरकार के द्वारा कई योजनाएं चलाई गई हैं। भारत की आधी आबादी महिलाओं की है और विश्व बैंक की एक

रिपोर्ट के अनुसार अगर महिला श्रम में योगदान दे तो भारत की विकास दर दहाई की संख्या में होगी। समान
पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ
भी भेदभाव नहीं किया जा सकता। कार्य-स्थल में उत्पीड़न के खिलाफ सख्त कानून बनाया गया है।
लेकिन समय के अनुसार धरातल पर महिला अधिकार की तस्वीर साफ एवं प्रबल रूप से प्रस्तुत करने
की जरुरत है जिससे कि शोषण कर्ताओं में एक भय व्याप्त हो सके। खास करके उन सभी मामलों विशेष रूप
से नजर गड़ाए रखने की जरूरत है जिनका इस संसार में अब कोई नहीं है। ऐसी हमारी बहने जोकि असमय
विधवा हो गईँ। जिनके पति को असमय यमराज ने संसार से छीन लिया।

वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक।
(सज्जाद हैदर)

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।