वाकई ! इस चमत्कार को नमस्कार है !!

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वाकई ! इस चमत्कार को नमस्कार है !!

 

तारकेश कुमार ओझा 

यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है, मातृभाषा.कॉम का नहीं।

क्या आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि कोई बिल्कुल आम शहरी युवक बमुश्किल चंद दिनों के भीतर इतनी ऊंची हैसियत हासिल कर लें कि वह उसी माहौल में लौटने में बेचारगी की हद तक असहायता महसूस करे, जहां से उसने सफलता की उड़ान भरी थी। मैं बात कर रहा हूं। भारतीय क्रिकेट टीम के सफलतम कप्तान महेन्द्र सिंह धौन की। जिन्होंने महज 12 साल के करियर में क्किकेट की बदौलत वह मुकाम हासिल कर लिया कि उनकी जिंदगी पर फिल्म बन कर भी तैयार हो गई। सचमुच यह  चमत्कार है जिसे नमस्कार करना ही होगा।

वे 2004 के बारिश के दिन थे, जब हमने सुना कि हमारे शहर खड़गपुर के प्रतिभाशाली क्रिकेट खिलाड़ियों में शामिल और रेलवे में टिकट कलेक्टर महेन्द्र सिंह धौनी का चयन भारतीय क्रिकेट टीम में हो गया है। चंद मैच खेल कर ही वह खासा च र्चित हो गया औऱ देखते ही देखते सफलता के आकाश में सितारे की तरह जगमगाने लगा। हालांकि तब तक वह सेलीब्रि्टीज नहीं बना था। श्रंखला खत्म होने के बाद वह नौजवान आखिरी बार शहर लौटा। सिर पर बड़ा सा हेलमेट लगा कर बाइक से घूम – घूम कर उसने अपने जरूरी कार्य निपटाए , जिनमें रेलवे की नौकरी से इस्तीफा देना भी शामिल था। हालांकि तब के तमाम बड़े अधिकारी उससे नौकरी न छोड़ने की अपील करते रहे। उसके सारे क्लेम पर विचार करने का आश्वासन देते रहे। लेकिन वह नहीं माना। उसने नौकरी छोड़ दी और बिल्कुल आम रेल यात्री की तरह ट्रेन में सवार होकर इस शहर को अलविदा कह दिया। शहर में उसका अपना कोई सगा तो था नहीं, अलबत्ता इष्ट – मित्रों की भरमार थी। कुछ उसे छोड़ने स्टेशन तक भी गए। वह शायद हावड़ा – मुंबई गीतांजलि एक्सप्रेस थी, जिससे धौनी को सफलता के अकल्पनीय सफर पर निकलना था। जैसा देश में आम नागरिकों के साथ होता है। रेल यात्रा आकस्मिक परिस्थितियों में हो रही थी, तो बेचारे का ट्रेन में आरक्षण भी नहीं था। साथियों ने एक टीटीई को कह कर उसे ट्रेन के एसी कोच में बैठाया कि इसमें तब के लिहाज से नामी क्रिकेट खिलाड़ी महेन्द्र सिंह धौनी को बैठाया गया है। स्टेशन छोड़ने गए साथी बताते हैं कि तब उस टीटीई ने झल्ला कर कहा था कि कौन धौनी और  खिलाड़ी है तो क्या हुआ। इतना कह कर वह टीटीई तमतमाता हुआ आगे बढ़ गया। बस कुछ दिन बीते और घटना के चश्मदीद रहे साथी उस टीटीई को  ढूंढने लगे कि भैया , एक बार सोच तो लो कि  तुमने क्या कहा था…।
क्योंकि चंद दिनों के भीतर ही वह आम शहरी युवा व्यक्ति से परिघटना बन चुका था। वह सफलता के आकाश पर धऱुवतारा की तरह चमकने लगा।जिस युवा को शहर ने अपने बीच करीब तीन साल का अंतराल व्यतीत करते देखा , वो  परिदृश्य पर सितारे की तरह जगमगाने लगा।  वह बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विज्ञापनों के लिए सबसे पसंदीदा सितारा बन चुका था। शहर को अलविदा कहने के कुछ दिन बाद ही वह शहर के नजदीक यानी राज्य की राजधानी कोलकाता में एक मैच खेलने आया। इस पर  साथ खेलने – खाने वाले उसके तमाम संगी- साथी उससे मिले और कम से कम एक बार शहर आने की गुजारिश की। इस पर उसने अपनी असहाय स्थिति का हवाला देते हुए कहा कि अब उसकी गतिविधियां एक विभाग द्वारा नियंत्रित होती है। उसका कहीं आना – जाना अब लंबी औपचारिकता और प्रकिया की मांग करता है। क्योंकि चंद दिनों में ही वह  अचानक वह आम से खास बन चुका था। वह अर्श से फर्श पर था। उसकी अपार  ख्याति और धन – प्रसिद्धि से दुनिया हैरान थी।जल्द ही मालूम हुआ कि अंतर राष्ट्रीय पत्रिका फोबस्र् ने उसे सबसे ज्यादा कमाई करने वाला खिलाड़ी घोषित कर दिया है।उसकी सालाना कमाई कल्पना से परे हो चुकी थी।  बेशक यह चमत्कार था जिसे नमस्कार किए बिना नहीं रहा जा सकता। लेकिन पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि सफलता के शिखर तक के इस असमान्य उड़ान के पीछे उस सफल व्यक्ति से बड़ा करिश्मा क्रिकेट का है जिसके पीछे अरबों – खरबों का बाजार खड़ा है।
देश की विडंबना ही है कि समुद्र पर पुल बनाने और असाध्य रोगों का इलाज ढूंढने वालों को कोई नहीं जानता – पहचानता। लेकिन एक क्रिकेट खिलाड़ी को मैच खेलते करोड़ों लोग देखते हैं। उसकी हर स्टाइल और अदा पर कुर्बान होते हैं। मुझे नहीं लगता कि हमारे देश – समाज में क्रिकेट को छोड़ और किसी में यह क्षमता है कि वो किसी आम शहरी युवा को चंद दिनों में ही धौनी जैसा कद और हैसियत दिला सके।

लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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