
नील की खेती में कुछ गधे एक घोड़ी के साथ घुसकर खच्चरों की संख्या बढ़ाने की कोशिशों में फसल का सत्यानाश कर रहे थे। जिस सिपाही को वहाँ की देखभाल के लिए तैनात किया गया था उसे दफेदार के आदेश के बगैर अपनी मर्जी से कुछ करने पर मनाही थी। इसलिए उसने फौरन ये बात दफेदार को बता दी और अगला हुकुम मिलने की प्रतीक्षा करने लगा।
जिस सिपाही को वहाँ की देखभाल के लिए रखा गया था। उसकी ड्यूटी तो यही थी कि वो खेती की देखभाल करे पर वह अपनी मर्जी से कुछ न करे इस बात का भी पूरा ध्यान रखा गया था। ऐसा आदेश तब जारी किया गया था जब सिपाही ने खेत में घुस आई एक भैंस को अपनी ड्यूटी समझकर भगा दिया था और बाद में पता चला कि वो भैंस वहाँ के दरोगा की थी। तब इस बात को लेकर वहाँ के दफेदार और जमीदार को काफी फजीहत झेलनी पड़ी थी। इसके बाद वहाँ के सूरमा ने ऐसा आदेश जारी किया कि उससे पूछे बगैर एक तिनका भी इधर से उधर न किया जाय।
हाथ दफेदार के भी ऊपरी फरमान से बंधे थे। हर बात की रिपोर्ट उन्हें भी अपने सीनियर को देनी थी नहीं तो सर्विस के सालाना रिपोर्ट में कम पॉइंट आने का खतरा था। इसलिए दफेदार ने इस बात की रिपोर्ट जमीदार को लगाई। उसके बाद जमीदार ने ये बात दीवान को बताई। दीवान की बात अब इलाके के सूरमा तक पहुंचनी थी। लेकिन दीवान इतनी सी रिपोर्ट से संतुष्ट न थे इसलिए उन्होंने जमींदार को और ब्यौरे के साथ आने का आदेश दिया।
गधे हैं तो कितने गधे हैं? कितने गधे काले हैं कितने लाल हैं या कितने सफेद? वो घोड़ी के साथ हैं तो घोड़ी उन्हें कहाँ मिली? और मिली भी तो वो किस रास्ते से खेती में घुसे। उनमें से पालतू कितने हैं जंगली कितने हैं? और अगर वो पालतू हैं तो किसके हैं। जिसके भी हैं उनके बाप का नाम क्या है? वे किस गांव के हैं आदि आदि।
महीनों तक वे इधर उधर सिपाहियों को भेजकर पूरे आंकड़े इकट्ठा करवाते रहे। फिर पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद सब कुछ टाइप करवाकर दीवान के सामने उपस्थित हो गये।
दीवान जी अब आये हुए आंकड़ों से तो संतुष्ट थे पर कागज में तमाम व्याकरणिक अशुद्धियां थीं जिसे उन्होंने अपने मुंशी के साथ मिलकर दो चार दिन में फाइनल कर लिया।
इस प्रकार गधों के घुस आने की रिपोर्ट अपना चैनल फॉलो करते हुए धीरे धीरे सूरमा तक पहुंच ही गई। लेकिन तब तक नील की खेती का सीजन समाप्त हो चुका था। खेत पूरे खाली हो चुके थे। अब खाली खेतों में घोड़े घूमें या गधे क्या फर्क पड़ता है।
इसलिए ऐसी रिपोर्ट सुनकर सूरमा पहले तो खूब हंसे फिर सिपाही और दफेदार को तलब किया।
”तुम्हें यही फालतू की रिपोर्ट देने के लिए वहाँ रखा गया है क्या?” सूरमा ने दफेदार के आते ही उसे डांटते हुए पूछा।
सूरमा के सामने जाते ही दफेदार की सिट्टी-पिट्टी वैसे ही गुम हो जाती थी। उसका बचा खुचा आदमित्व भी अब डांट खाकर गुम हो गया। अब वो सूरमा के सामने खड़ा अब शुद्ध सरकारी आदमी था। उसने अपने पैर के साथ साथ अब हाथ भी जोड़ लिया था और एक आभासी दुम भी बार बार हिला रहा था।
“सरकार मैंने आज ही चार्ज लिया है इसलिए मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता लेकिन मेरे देख रेख में कभी ऐसी गलती नहीं होगी इस बात का मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ।”
दफेदार की इजहारे मजबूरी और डरा हुआ चेहरा देखकर सूरमा को अंदर ही अंदर काफी खुशी महसूस हुई उसके बाद उन्होंने उसे जाने दिया।
दफेदार जितनी गालियां ऊपर से खाकर आया था उसका हजार गुना करके सिपाही को दिया फिर काफी सोच विचार के बाद ये फैसला लिया कि अब से खेत मे आये जानवरों का रिकार्ड रखने के लिए एक रजिस्टर खोला जाएगा। जिसको भरने की जवाबदारी वहाँ पर तैनात सिपाही की होगी और हर महीने उस रजिस्टर का इंस्पेक्सन हायर हेडक्वाटर से भी कराया जाएगा।
पाठकों को ये जानकर अपार खुशी होगी कि ये कहानी अंग्रेजों के जमाने की है। नील की खेती की जगह अब वोटों की खेती होने लगी। जमींदार, दफेदार आदि पदों के नाम भी बदल गये पर वो रजिस्टर अब तक भरा ही जा रहा है।
चित्रगुप्त
ग्राम जलालपुरपोस्ट कुरसहाजिला बहराइचउत्तर प्रदेश