बलात्कार एक जघन्य अपराध, कैसे लगे अंकुश?

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यदि किसी संस्कृति को समझना है तो सबसे जरुरी है कि हम उस संस्कृति की महिलाओं के बारे में जानें, उनके हालात और परिस्थितियों को समझने की कोशिश करें क्योंकि महिलाएं समाज के वास्तविक चेहरे का दर्पण होती हैं। भारतीय समाज के बारे में देखा जाये तो हम पाते हैं कि महिलाएं पहले की अपेक्षा अधिक सशक्त हुई हैं, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर काफी उन्नति कर ली है लेकिन इन सबके बावजूद भी हमारे समाज में महिलाओं के प्रति अपराध में कोई कमी नहीं आ रही है, अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। भारतीय समाज में महिलाओं की इस दुर्दशा पर मैथलीशरण गुप्त जी कि पंक्तियाँ एकदम सटीक बैठती हैं “अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,आँचल में है दूध आखों में पानी” ये पंक्तियाँ समाज की वास्तविकता को बयान करती हैं। ऐसा कोई दिन नहीं बीतता है कि देश के किसी कोने से महिलाओं के खिलाफ अत्याचार की खबर पढ़ने को नहीं मिलती हो, बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के पीछे कुंठित मानसिकता झलकती है, नारी से उसकी अस्मिता छीनकर उसे असहाय, अबला बनाने की कोशिश और निकृष्ट सोंच हमारे समाज को दिन-प्रतिदिन दलदल की ओर ले जा रही है क्योंकि जिस समाज में महिलाओं को उनका उचित सम्मान नहीं मिलता है उस समाज का कौरवों की भांति पतन होना निश्चित है।
मेरा मानना है कि महिलाओं के प्रति बढ़ रहे बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए कार्यपालिका को दोहरी रणनीति अपनानी चाहिए। प्रारंभिक रणनीति के तहत स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए, समय बाध्यता के साथ कठोर कानून बनायें जाएं, दुष्कर्म मामले में त्वरित न्याय के लिए स्पेशल न्यायालय बनायें जाएं और सक्षम अधिकारी नियुक्त किये जाएं तथा दोषियों के लिए शीघ्रातिशीघ्र फाँसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए। दूसरी दीर्घकालिक रणनीति के तहत समाज में शिक्षा के स्तर को मजबूत किया जाये तथा समय-समय पर विशेष जागरूकता अभियान एवं गोष्ठियों का आयोजन किया जाना चाहिए तथा लैंगिक समानता को बढ़ावा देना चाहिए। बलात्कार मामले में फैसला और सजा ऐसी होनी चाहिए जिससे दूसरों को नसीहत मिले, लेकिन गौरतलब बात ये है कि जिन्हें सजा दी जाए वे वास्तविक अपराधी हों, अन्यथा कभी-कभी मासूम लोगों को द्वेष के कारण बलि का बकरा बना दिया जाता है।

लेखक
नवनीत शुक्ल(शिक्षक)
फतेहपुर(उत्तर प्रदेश)

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