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कैसे छोड़ दू साथ प्रिये !
जीवन की ढलती शामो में,
धूप छांव की साथी रही हो
मेरे दुख सुख के कामों में।।
साथ मरेंगे साथ जिएंगे,
ये वादा किया था दोनों ने,
क्यो अलग हो जाए हम ,
जब साथ फेरे लिए थे दोनों ने
जर्जर शरीर हो चला दोनों का
अब तो कोई इसमें न दम रहा
एक दूजे की करगे मदद हम
जब दोनों का ये साथ रहा।।
एक दूजे का बने हम सहारा
तब ही ये जीवन चल पाएगा
बने न हम किसी के मोहताज
तभी ये शरीर चल पाएगा ।।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम
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