
शिक्षा के लिए आयु बीतने के बाद वयस्कों हो जाने पर बाद में दी जाने वाले शिक्षा व्यस्कों के लिए होती है इसके आजकल बहुत से माध्यम हैं।देश की विविधता और अनेक कारणों से आवश्यकता रही और अभी भी है।नयी शिक्षा नीति 2020 ने एक नई उम्मीद जगाई है|
भारत एक विशाल आबादी वाला विविधतार्ण देश है।लम्बे समय तक बाहरी गुलामी रही।अनेक प्रकार के अनेक समुदायों संस्कृतियों के द्वारा समय समय पर आक्रमण हुए।अतः आजादी के बाद इस प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता अनुभव हुई। 1956 में प्रथम बार इसके लिए प्रौढ़ निदेशालय खुला।अनौपचारिक शिक्षा प्रणाली लायी गई।अनके सरकारी गैर सरकारी संस्थायें संगठन समूह व लोग सामने आये।गांव गली तक इसकी अलख पहुंची व अनेक सफल कार्य हुए।सरकारों ने जोर दिया कि वयस्क महिलाये आगें आयें ताकि उनका पूरा परिवार शिक्षित हो सके- पढ़ी लिखी नारी घर की उजियारी की भावना के साथ।अनेक दूरस्थ मुक्त विद्यालय सहयोग करते दिखे।
अभी भी देश में इसकी आवश्यकता है।बहुत से ऐसे परिवार हैं जो अपने बच्चों की शिक्षा की अपेक्षा काम पर भेजते हैं ।यह आजीविका कमाने में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि इनकी शिक्षा पाने की आयु निकल जाती है।कई बार जीवनयापन उसकी आवश्यकता के लिए शिक्षा के महत्व को नजर अन्दाज कर देते हैं।नजर अंदाजी के कारणों व उसके निवारण पर नयी शिक्षा नीति खुलकर बात करती है।अव्यस्यक पीढ़ी के आगामी भविष्य जीवनयापन के लिए सशक्त रणनीति है।
अब तक गरीबी या अधिक बच्चों के कारण लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने के स्थान पर काम करने भेजते हैं।उनके परिवार में काम का मतलब अधिक आय है।साफ सफाई झाड़ू लगाने दूकानों घरों वर्कशापों चाय की दूकानों होटलो ढाबों जैसे अन्य कामों के अलावा इनके पास कोई विकल्प नहीं होता है।ऐसे बच्चे ही अधिक अनुपस्थिति या स्कूल छोड़ने वाले होते हैं।सुखद यह है कि नयी शिक्षा नीति 2020 इन सब पर गहन मंथन कर रही है।उसमें ऐसे दुष्चक्र पर विराम लगाने या कम करने के लिए हुनर को शिक्षा से जोड़ा गया है।कौशल विकास इस क्षेत्र में पहले से ही अच्छा कार्य कर रहा है।
नयी शिक्षा नीति में विभिन्न कक्षाओं में ड्राप की संख्या कम से कम करने हो सके तो शून्य तक लाने की बात की गई है।अगर ऐसा हो जाता है हमें एक समय के बाद वयस्कों के लिए अलग से समय देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।फिलहाल यह भविष्य की बात है।उम्मीद करते हैं कि सरकार की योजना अनुसार सबकुछ ठीक ठाक क्रियान्वित हो जाये।देश की राजधानी से अन्तिम गांव तक साफ असर हों सभी का सहयोग मिले।
चूंकि वयस्क अनपढ़ भले ही हों पर उम्रदराज होने से अनुभवी किसी न किसी कार्य में लगे होने वालेलोग होते हैं।अत : उनकी शिक्षा अव्यस्कों जैसी सरल नहीं है।उनके अन्दर स्वाभाविक रूप से इसके लिए लगन पैदा करना पहली आवश्यकता है।अतः उनकी रुचि क्षमता हुनर भाषा संस्कृति दैनिक क्रियाकलाप व्यवहार स्वास्थय और स्वच्छता से लेकर कर्तव्यों व अधिकारों को सम्मिलित कर किसी योजना को सफल किया जा सकता है।खेलकूद - मनोरंजन और उनके लिए समय का विशेष ध्यान अनिवार्य रूप से रखना ही है।
शशांक मिश्र भारती
बड़ागांव शाहजहांपुर (उ0प्र0)