जय शंकर चालीसा

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शारद पूत नमन करूं, जय शंकर परसाद।
नाटक कविता अरु कथा,हिन्दी छायावाद।।

जय शंकर हिन्दी हितकारी।
साहित सेवा सदा विचारी।।1
विश्वनाथ काशी कल्याणी।
देवी के घर शारद वाणी।।2
माघा शुक्ला दसमी ईशा।
संवत उन्निस छैयालीसा।।3
जनवरि तीस नवासी आई।
जयशंकर जब जन्में भाई।।4
क्वींस कॉलेज करी पढ़ाई।
बाकी शिक्षा घर में पाई।।5
सत्रह में मां बाप गंवाई।
ता पीछे बिसरे बड़ भाई।।6
विधवा भाभी माता देखा।
जीवन की जब टूटी रेखा।।7
कमला देवी से सुत जाये।
रत्ना शंकर नाम धराये।।8
घर में विपदा ऐसी आई।
पलपल होता था दुखदाई।।9
गुरू दीन बंधु ब्रह्मचारी ।
भाषा संस्कृत के भंडारी।।10
संस्कृत उर्दू हिंदी फारस ।
भाषा चारों करी महारत।।11
वेद पुराण इतिहास खजाना।
साहित्य का बारीकी ज्ञाना।12
पाक कला के तुम अधिकारी।
शतरंजा के चतुर खिलाड़ी।।13
सादा खाना सादा पीना।
प्रकृति सरल एकाकी जीना।।14
नवम बरस ब्रज भाष सवैया।
नाम कलाधर बाल रचैया।।15
कविता नाटक न्यास कहानी।
आलोचन के निबंध बखानी।।16
छाया वादी जनक कहाई।
कविता प्रकृति नारी बताई।।17
सन छत्तीसा करूं बड़ाई।
कामायनि सारे जग छाई।।18
हिंदी कविता गूढ़ लिखाई।
छाया कु महाकाव्य बनाई।।19
मन श्रद्धा अरु बुद्धि मिलाई।
आनंद रूपक ज्ञान दुहाई।।20
भाषा शैली भाव बहाई ।
तुम्हरी रचना की निपुणाई।।21
कानन कुसुमा आंसू झरना।
प्रेम पथिक लह राणा वरणा।।22
इरावती तितली कंकाला।
तीन उपन्यासा जय माला।।23
यथार्थता कंकाल बखाना।
ग्राम सुधारा तितली ज्ञाना।।24
इरावती इतिहासिक वचना।
जय शंकर की आधी रचना।।25
शंकर कथा बहत्तर लेखी।
नई सोंच दुनिया ने देखी।।26
वातावरण प्रधान कहानी।
प्रेम कला इतिहास समानी।।27
ग्राम कहानी पहली पाखी।
सन बारह में इन्दू छापी।28
चंपा मथु इरावती लैला।
ननकू भेजो मधुआ मेला।।29
छाया प्रति औ दीपअकाशा।
इंदर आंधी कथा विकासा ।।30
तेरह नाटक गद्य अधारा।
जयशंकर ने लिखे विचारा।।31
नाटक आठ इतिहास धारा।
त्रय पुराण दो भाव विचारा।।32
इस्कंद चंद्र स्वर्णिम भारत।
देश प्रेम की लिखी इमारत।।33
यह मधुमय है देश हमारा।
ऐसे गीतों का भंडारा।।34
ध्रुवस्वामी अजात जनभाखा।
जन्मेजय का राज विशाखा।35
नायक नायिक गुणों की खाना।
करुणा प्रेम त्याग बलिदाना।36
अड़तालीसा अवधी थोरी।
साहित लिखके भये करोरी।।37
वर्णन भाव अलंकृत शैली।
प्रतीक सूक्ती इनमें भेली।38
सरस्वती के तुम परसादा।
तुमको सारे जग ने चाखा।।39
जयजय जय कवि शंकर भाई।
मसान कवि ने कविता गाई।।40

पंद्रह नव सैतीस को,शंकर का प्रस्थान।
ऐसे कवि विरले मिलें,कहत हैं कवि मसान।।

डॉ दशरथ मसानिया
आगर मालवा

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