पारस

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sapana maglik

जब काटता नहीं था,नाई भी उसके बाल,

जात-पात के वो मासूम,हल करता था

नितदिन ही कांटेदार,असंख्य सवालl

हर सवाल पहले वाले से ज्यादा कठिन,

अनसुलझा-सा और अपमानजनक

घूम जाता था,अपनी ही धुरी पर

पृथ्वी-सा उसका दिमाग..

काँप जाते थे इस भूकंप से,

गरीब की कुटिया जैसे उसके पाँव..

झूलता अधर में पीले पत्ते-सा उसका अस्तित्वl

आज वही ऊँची जात वाले

लगाते हैं धोंक उसके आगे,

गाते हैं चरण वन्दना..

चढ़ाते हैं भोग,करते हैं अर्चना,

क्योंकि वह दलित बन गया है एक बड़ा नेता

मिल गया है उसे अकूत धन और सत्ता का पारसl

 

उसकी औलाद पखाने की ईंट नहीं,

बल्कि बन गई है सत्ता की वारिस..

पत्थर का पारस जो बनाया करता था

लोहे को कभी स्वर्ण,

सत्ता का पारस बनाता है

दलित को सवर्ण।

#सपना मांगलिक

परिचय : भरतपुर में १९८१ में जन्मीं सपना मांगलिक की शिक्षाएमए और बीएड(डिप्लोमा एक्सपोर्ट मैनेजमेंट) हैl आगरा के कमला नगर (उत्तरप्रदेश) में आपका निवास हैआप समाजसेवा के लिए अपनी ही समिति संचालित करती हैंसाथ ही साहित्य एवं पत्रकारिता को समर्पित संस्था भी चलाती हैंआजीवन सदस्य के रूप में ऑर्थर गिल्ड ऑफ़ इंडिया,इंटरनेशनल वैश्य फेडरेशन तथा आगरा में अन्य संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैंआपकी प्रकाशित कृतियों में-पापा कब आओगे,नौकी बहू(कहानी संग्रह),सफलता रास्तों से मंजिल तक,ढाई आखर प्रेम का (प्रेरक गद्य संग्रह),कमसिन बाला और जज्बादिल(काव्य संग्रह) सहित हाइकु संग्रह भी हैl आपने संपादन भी किया हैl आपको सम्मान के तौर पर आगमन साहित्य परिषद् द्वारा दुष्यंत सम्मान,काव्य मंजूषा सम्मान,ज्ञानोदय साहित्य भूषण-२०१४ सम्मान,गंगा गौमुखी एवं गंगा ज्ञानेश्वरी साहित्य गौरव सम्मान और विर्मो देवी सम्मान आदि भी दिया गया हैl आप लेखन में लगातार सक्रिय हैंl 

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