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ख़ुदा की यूँ कुदरत लिखेंगे
उन्हीं की इबारत लिखेंगे
वही दो जहानों का रहबर
उन्हीं की इनायत लिखेंगे
मुहब्बत के शायर है हम भी
क़लम से मुहब्बत लिखेंगे
मिटेंगी तुम्हारी यूँ मुश्क़िल
ख़ुदा को हक़ीक़त लिखेंगे
नज़र चार तुमसे हुई है
तुम्हारी शरारत लिखेंगे
सभी माँ को दिल से पुकारे
क़लम से नसीहत लिखेंगे
क़लम के सिपाही बनेंगे
नही हम सियासत लिखेंगे
खदेड़े मुल्क़ से जो दुश्मन
वो सेना की ताक़त लिखेंगे
हवेली जो नफ़रत की ये है
ख़ुशी की वसीयत लिखेंगे
आकिब जावेद
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