जल बना जंजाल, फैला सियासी जाल।

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वाह रे सियासत तेरे रूप हजार। सत्ता का लोभ एवं कुर्सी की चेष्टा किस स्तर तक जा सकती है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, सियासत की ऐसी उठा-पठक की जिसको देखने के बाद देश की जनता सोचने पर विवश एवं मजबूर हो रही है कि क्या ऐसा भी हो सकता है? क्योंकि, जिस प्रकार के बयान आ रहे वह चौकाने वाले हैं, परिस्थिति अत्यंत चिंताजनक है जलभराव एवं बाढ़ के कारण जीवन एवं मृत्यु के बीच संघर्ष है जिसके निराकरण पर कार्य होना चाहिए, न कि सियासी बाँण छोड़ जाने चाहिए। जबकि ऐसी दुखःद परिस्थिति के समय सभी जिम्मेदार व्यक्तियों को अपने दायित्वों का निर्वाह करना चाहिए परन्तु, इसके उलट जिम्मेदारों की ओर से आने वाले बयान दुःखी जनता के मन को और कुरेदने का कार्य कर रहे हैं। ज़ख्म पर मलहम के स्थान पर नमक-मिर्च डालने का कार्य किया जा रहा है। जिस प्रकार की बयानबाजी हो रही है उससे तो स्पष्ट हो रहा है कि जनता के बीच दोनों ओर से एक दूसरे को खलनायक घोषित करने के लिए पूरी ताकत झोंकी जा रही है, जिसमें कोई छोटा अथवा बड़ा किसी भी प्रकार का कोई मौका नहीं गंवाना चाहता। सबसे पहले जल जमाव के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जिम्मेदार ठहराने का सिलसिला सहयोगी दल की तरफ से आरंभ हुआ। इसकी शुरुआत एक कद्दावर केंद्रीय मंत्री के द्वारा की गई। ज्ञात हो कि सहयोगी दल के द्वारा जब इस प्रकार के आरोप प्रत्यारोप का खेल खेला जाएगा तो यह स्वाभाविक है कि एक बड़े प्रश्न का जन्म होना निश्चित है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता। इस पूरे घटनाक्रम में एक विचित्र रूप तब दिखाई दिया कि जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वंय कहा कि मुंबई भी डूबता है तब कोई क्यों नहीं बोलता है, तो इस बयान का विरोध भी सहयोगी दल के नेता के द्वारा ही आरंभ किया गया। इस प्रकार की दोनों पार्टियों की आपस में रस्सा-कसी शांत शब्दों में बहुत कुछ कह रही है जिसे समझने की आवश्यकता है। क्योंकि, भाजपा नेताओं के द्वारा दिए गए बयानों से साफ प्रतीत होता है कि वह पूरे जल जमाव का ठीकरा नीतीश कुमार पर ही फोड़ना चाहते हैं। जबकि बिहार के नगर विकास विभाग में सहयोगी दल के ही मंत्री विराजमान हैं। तब इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया जाना तथा आरोप प्रत्यारोप का खेल खेला जाना राजनीति की क्षेत्र में एक बड़ी लाईन खींचते हुए नया राजनीतिक खाका तैयार करता हुआ दिखाई दे रहा है।
परन्तु सबसे दुःखद बिन्दु यह है कि मानवता भी किसी भावना का नाम है, प्रत्येक स्थान पर राजनीति से कार्य नहीं चलता इस समय जनता को मदद की आवश्यकता है जिसे सभी नेताओं को एक जुट होकर सहयोग किया जाना चाहिए था परन्तु नेताओं ने मानवता से इतर अपनी राजनैतिक रोटी को सेंकना ही उचित समझा और राजनैतिक रोटी को ही सेंकने की तरजीह दी जिसकी सिंकाई हो रही है। क्या इस प्रकार के आरोप प्रत्यारोप से जनता का लाभ होगा? क्या ऐसे आरोपों से जनता को सहायता प्राप्त होगी? क्या इस प्रकार की बयानबाजी से जनता के दर्द का निराकरण हो पाएगा? नहीं कदापि नहीं इस प्रकार के बयानों से तो ऐसा हो पाना असंभव है। परन्तु, इस बयानबाजी का जो उद्देश्य है उसकी आधारशिला अवश्य रखी जा रही है। क्योंकि राजनीति के क्षेत्र में कोई भी नेता जब कुछ असमय बोलता है तो यह सिद्ध हो जाता है कि यह समय इस बात का क्या औचित्य था, अतः निश्चित कुछ संकेत देने का प्रयास किया जा रहा है यदि शब्दों को परिवर्तित करके कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा कि जनता का ध्यान पूरी तरह से दूसरी ओर मोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। जिससे कि जनता भ्रमित हो जाए और मुख्य बिन्दु से भटककर दूसरी ओर गतिमान हो जाए जिस ओर ले जाने का प्रयास किया जा रहा है। यह जनता उसी ओर तीव्रगति से गतिमान हो जाए जिस ओर नेता जी ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। फिर राजनीति का उद्देश्य सिद्ध हो जाए।
अतः इस प्रकार के बयानों से साफ जाहिर हो रहा है कि बिहार की राजनीति में भी परिवर्तन होने की पूरी संभावना है जोकि मात्र अवसर पर ही आधारित है, बिहार की राजनीति भी समय की प्रतीक्षा कर रही है जैसे ही अनुकूल समय का प्रवेश होगा बिहार की राजनीतिक हवा में भी परिवर्तन होना स्वाभाविक है जिसके प्रबल संकेत मिल रहे हैं। क्योंकि कहते हैं कि बिना आग के धुआँ नहीं निकलता। जब-तक आग नहीं होगी तब-तक धुआँ कदापि नहीं निकल सकता। बिहार की राजनीति में भी आग सुलग रही है वरिष्ठ नेतओं की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर निगाहें टिकी हुई हैं जोकि किसी भी प्रकार का मौका हाथ से नहीं गंवाना चाहते।
राजनीतिज्ञ विश्लेषक।
(सज्जाद हैदर)

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