आ बैठे उस पगडण्डी पर

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आ बैठे उस पगडण्डी पर,
जिनसे जीवन शुरू हुआ था।

बचपन गुरबत खेलकूद में,
उसके बाद पढ़े जमकर थे।
रोजगार पाकर हम मन में,
तब फूले ,यौवन मधुकर थे।
भार गृहस्थी ढोने लगते,
जब से संगिनी साथ हुआ था।
आ बैठे उस पगडण्डी पर
जिनसे जीवन शुरू हुआ था।

रिश्तों की तरुणाई हारी,
वेतन से खर्चे रोजाना।
बीबी बच्चों के चक्कर में,
मात पिता से बन अनजाना।
खिच खिच बाजी खस्ताहाली,
सूखा सावन शुरू हुआ था।
आ बैठे उस पगडण्डी पर,
जिनसे जीवन शुरू हुआ था।

बहिन बुआ के भात पेच भर,
हारे कुटुम कबीले संगत।
कब तक औरों के घर जीमेंं,
पड़ी लगानी मुझको पंगत।
कर्ज किए पर मिष्ठ खिलाएँ।
गुरबत जीवन शुरू हुआ था।
आ बैठे उस पगडण्डी पर,
जिनसे जीवन शुरू हुआ था।

नाम–बाबू लाल शर्मा 
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः 

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