Read Time55 Second
आधुनिकता के युग में
कुछ ऐसे हम आए
लैटर बॉक्स तक को
हमारे बच्चे जान नहीं पाए
कंप्यूटर, मोबाइल की दुनिया में
कुछ ऐसे झूल गए हैं
नीली, पीली खत चिट्ठियों को
हम भी भूल गए हैं
कैसे हम डाकघरों में
पंद्रह पैसे में खत मांगा करते थे
कैसे घर के कोने में
सारी चिट्ठियों को टांगा करते थे
लैटर बॉक्स के साथ भी
अपना गहरा नाता होता था
लाल रंग का ये डिब्बा
सब बच्चों को प्यारा होता था
वाट्स अप, फेसबुक और ट्विटर में
अब हमने खुद को रमा दिया
लैटर बॉक्स की रौनक को
अपने जीवन से भूला दिया
सचिन राणा हीरो
हरिद्वार(उत्तराखंड)
Post Views:
557