बड़ी अदालत में अपनी भाषाएं 

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vaidik
आजादी के 70 साल बाद हमारे सर्वोच्च न्यायालय की नींद अब खुली तो अब हम उसकी पीठ थपथपाए बिना कैसे रह सकते हैं ? अब उसने कहा है कि उसके अंग्रेजी फैसलों का संक्षिप्त अनुवाद छह भारतीय भाषाओं में भी उपलब्ध हो सकेगा ताकि जज और वकील ही नहीं, मुकदमा लड़नेवाले साधारण लोग भी फैसले की मोटी-मोटी बात समझ सकें। मैं पूछता हूं कि फैसलों का अनुवाद क्यों, मूल फैसला ही आप हिंदी में देना शुरु क्यों नहीं करते ? अंग्रेजी में कानून, अंग्रेजी में बहस और अंग्रेजी में फैसला– यह भारत की अदालत है या अंग्रेज का अजायबघर है ? कानून की अंग्रेजी भाषा अपने आप में इतनी उलझी हुई होती है और उसके वाक्य इतने पेचीदा और लंबे होते हैं कि हमारा कानून जादू- टोना बनकर रह जाता है। हमारे बड़े-बड़े जज और वकील उन अंग्रेजी शब्दों के बाल की खाल उधेड़ने में इतने मशगूल हो जाते हैं कि न्याय एक कोने में धरा रह जाता है। इसीलिए हमारी अदालतों में लाखों मुकदमें बरसों से लटके रह जाते है। अंग्रेजी में चलनेवाली बहस के कारण मौत की सजा पानेवाले को यह पता ही नहीं चलता कि उसको यह सजा क्यों हुई है ? हमारी अदालतों को इस दुर्दशा से कब मुक्ति मिलेगी, भगवान ही जाने। इसीलिए मुझे डर है कि अंग्रेजी फैसलों के अनुवाद की भाषा कहीं अंग्रेजी से भी अधिक उलझी हुई न हो। फिर भी यह एक अच्छी शुरुआत है। 1965 में जब भाषा आंदोलन के कारण मैं जेल में था तो मैंने सुना था कि डाॅ. लोहिया ने भी जेल से आकर सर्वोच्च न्यायालय में अपनी बहस हिंदी में की थी। हम तभी से मांग कर रहे हैं कि बड़ी अदालतों का सारा काम-काज हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में हो। मुझे खुशी है कि हमारे प्रिय साथी श्री रामनाथ कोविंद ने, जो आजकल राष्ट्रपति हैं, केरल में जजों और वकीलों के एक बड़े समारोह में इस मुद्दे को दो-टूक शब्दों में उठा दिया था। इस उत्तम फैसले का श्रेय राष्ट्रपतिजी को तो है ही, उनके साथ-साथ प्रधान न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई को भी है, जिन्होंने इसे लागू कर दिया। अब शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल से मैं कहूंगा कि वे कानून की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में शुरु करवाएं और नए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला पहल करें कि अब भारत के कानून हिंदी में ही बनें। कुछ दिनों के लिए उनके अंग्रेजी अनुवाद की अनुमति दी जा सकती है।
 #डॉ. वेदप्रताप वैदिक 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।