
मैंने उनसे कहा कि “दद्दा जी,उधर बच्चे चमकी बुखार से मर रहे हैं,राष्ट्रीय शोक की घड़ी है और आपको क्रिकेट सूझ रहा है।”
दद्दा जी ने भड़कते हुए कहा- “मैं अपनी मर्जी का मालिक हूँ,मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं या फिर मैं कुछ ना करूं,मेरी मर्जी !आप बोलने वाले कौन!यहाँ-वहाँ बहुत कुछ घटता है।हरेक छोटी-बड़ी बात पर आप चाहें कि मैं ट्वीट करूं या फिर कुछ बोलूं या फिर कुछ लिखूं,यह कुछ ज्यादा अपेक्षा नहीं है! हाँ,शिखर धवन के अँगूठे में चोट लगे और मैं चिन्ता न जताऊं, ऐसा कैसे हो सकता है।देश के करोड़ों लोग इस बात को लेकर चिन्ता कर रहे हैं, ऊपर वाले भी कर रहे हैं तो अपने को भी चिन्ता-फिकर व्यक्त करना ही पड़ेगी न भाई!बात विश्व कप की है।क्रिकेट के जुनून की है।क्रिकेट के लिए यदि देश सब कुछ कर सकता है तो मैं भी थोड़ा बहुत करने की कुव्वत रखता ही हूँ।क्योंकि यह भी मेरी मर्जी है,इस पर मैं चुप्पी कैसे साध सकता हूँ। मैं सारे काम-काज छोड़कर पूछ सकता हूँ कि भाई स्कोर क्या हुआ है या फिर कितने विकेट हुए हैं, कौन खेल रहा है,आज किसका और किससे मैच है।ये तो मेरी मर्जी है कि मैं क्रिकेट मैच देखने स्टेडियम पहुँच जाऊं या घर-ऑफिस में टीवी पर चिपका रहूँ।मुझे क्या मतलब है इस चमकी-वमकी से।पूरा देश वाग्विलास कर रहा है, किसी दिन फुर्सत में, मैं भी कर लूंगा चमकी बुखार से यदि कुछ बच्चों की मौत हो रही है तो स्वास्थ्य विभाग देखे,उसका अमला देखे, तनख्वाह किस बात की ले रहे हैं रोटी-कपड़ा-मकान की बात हो या शिक्षा-स्वास्थ्य की, यह रोना तो रोज का है,कब तक रोते रहें। इतने विशाल देश में ऐसे छोटे-मोटे हादसे तो होते ही रहते हैं तो क्या हम यूं ही अपना समय जाया करते रहेंगे।”
“दद्दा जी,क्रिकेट और अन्य खेल तो चलते रहते हैं,दुख की घड़ी में हमें उनके लिए कुछ करना चाहिए”, अपने आप को संयमित रखते हुए मैंने कहा।
“विश्व कप के लिए तो हमारा तन-मन-धन न्यौछावर है,अर्पित है क्योंकि यह भाव किसी खेल के प्रति हमारे समर्पण का द्योतक है।मौत तो शाश्वत सत्य है, जो आया है उसे जाना ही है।कोई जल्दी चला जाता है, कोई देर से जाता है, किसी का स्थायी पट्टा तो है नहीं ,जाना तो पड़ेगा ही।सबकी सांसों का हिसाब जब ऊपर वाले के हाथ में है और जिसको जितनी सांसें आवंटित की है, वह उतनी जिन्दगी तो जियेगा ही,तब क्यों नाहक इन बातों को लेकर परेशान हुआ जाए। चिन्ता तो विश्व कप की है ।यह फिर से चार साल के बाद ही खेला जाएगा।इसीलिए मैं अभी क्रिकेट की ही सोच रहा हूँ।”दद्दा जी बोले।
“यह तो हमारी संवेदनहीनता है दद्दा”,मैंने कहा।
इसपर वे बोले- “जब हर कोई अपनी मर्जी का मालिक है, हर किसी को अपना मनचाहा करने की छूट है।कर्तव्य को ठेंगा तो कानून भी ठेंगे पर,पालन करने वाले की मर्जी और पालन करवाने वाले की भी मर्जी तो क्यों करें बवाल! सबकी अपनी-अपनी मर्जी तो मेरी अपनी भी मर्जी!”
और उनकी बात सुनकर मैं निरूत्तर रह गया।
#डॉ प्रदीप उपाध्याय
देवास,म.प्र.