‘राम’, एक ऐसा नाम,जो न केवल भगवान होने से जाने जाते हैं,वरन उन्होंने ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’-सा जीवन जीकर लोगों के लिए उत्कृष्ट जीवन का मापदंड स्थापित किया है। राम जो हर हिंदुस्तानी की आत्मा है। रोम रोम में बसते हैं, ऐसे हैं प्रभु राम। जब उनके जन्मदिवस का अवसर है,तो देश में उनके जन्मस्थल को लेकर अनायास ही,हो-हल्ला मचा हुआ है।
सोलहवी शताब्दी में जन्मे श्रीराम के अनन्य भक्त ‘तुलसी’ हनुमान चालीसा के अंतिम दोहे में कहते हैं-‘राम लखन सीता सहित ह्रदय बसहुँ सुर भूप’..इसमें अर्थ यह है कि,तुलसी, राम के मंदिर को अपने ह्रदय में स्थापित करने के लिए कहते हैं। यह सच भी है राम का मंदिर बाहर हो या नहीं हो,महत्वपूर्ण है राम को,राम जैसे आचरण को ह्रदय में स्थापित करना।
‘ख़ुदा’ के बारे में सुना है कि वे निराकार हैं,सर्वव्याप्त हैं तथा पश्चिम की ओर अभिमुख हो नमाज़ पढ़ने से हर प्रार्थना कबूल करतें हैं। यानि हिन्दुओं से अलग धर्म, जहाँ साकार ब्रम्ह की जगह निराकार को प्रधानता दी गई है। ख़ुदा की बंदगी के लिए स्थान निर्धारित है,जिसे मस्जिद कहा गया। आज भी घर पर नमाज़ पढ़ने से ही रब महिलाओं की प्रार्थना कबूल कर लेता है। ऐसे ही एक इबादतगाह का निर्माण तत्कालीन अयोध्या में किसी मुग़ल शासक ने बाबर की याद में करवाया, ऐसा लोग कहते हैं। वैसे बाबर एक यवन शासक रहा है, शायद देवदूत तो नहीं।
प्रश्न सम्मुख है कि,क्या ईश्वर और ख़ुदा को एक स्थान पर सीमित किया जा सकता है? वाक़ई दोनों का अस्तित्व अलग-अलग है ? या लोग धर्मांध हो रहे हैं? क्या धर्म के प्रति कट्टरता गलत है?
अपने धर्म के प्रति कट्टर होना बिलकुल भी गलत नहीं है,पर दूसरे के धर्म के प्रति द्वेष इस कट्टरता की परिभाषा में नहीं आता है।
हमें यह भी विचार करना चाहिए कि, क्या हम वाकई धर्म के सिखाए हुए सभी रास्तों पर चल रहे हैं, या सिर्फ उन्माद के लिए धर्म की किसी एक बात पर…,जो गलत लोगों द्वारा स्वार्थनिहित और गलत परिभाषित की गई है।
वास्तविकता यह है कि,अयोध्या में मंदिर बने या मस्ज़िद या मंदिर- मस्ज़िद दोनों, ये मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है,लेकिन सभी स्थितियों में महत्वपूर्ण यह है कि,अब समय है हम सभी के आत्ममंथन का,कि मन में राम अथवा ख़ुदा की सच्ची शिक्षाएँ आत्मसात हुई या नहीं,या सिर्फ उनमें उन्मादी भड़काऊ लोगों द्वारा की गई बातें ही घर कर गई है।
इस रामनवमी पर भगवान श्रीराम से यही कामना करते हैं कि,भगवन आप देश को आस्था और भावना के इस भंवर जाल से उबारें और एक बार फिर सिद्ध करें कि परमपिता परमेश्वर ही वह परमशक्ति है जिसे अलग अलग धर्मों के लोग विभिन्न नामों से जानते हैं।
#शशांक दुबे
परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में पदस्थ है| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय है |