निकलना खुल्द से आदम का सुनते आए है ग़ालिब …बहुत बेआबरू होकर तेरे कुचे से हम निकले …ग़ालिब की यह पक्ति रेत में मोती की मानिंद लगती है …जिंदगी की स्लाइस जो मन्त्रो की ध्वनियों में वही स्लाइस इन पंक्तियों में भी पिरोई गई है …
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जब भी बोलते हुए देखा या सुना तो बाहरी मन से यही एहसास होता था कि नरेंद्र मोदी के पास कोई विजन है क्योंकि बगैर विजन के वाणी में ओज नहीं आ सकती …खैर उनके विजन से मेरा कोई दूर दूर तक वास्ता नहीं …अपन ठहरे धूल की मानिंद हवा के इशारे से कुनबा बदलने वाले शख्स के पास भला विजन क्या हो सकता है ! कई बार अपन भी अपने अंदर विजन रखने की फ़कत कोशिश की लेकिन सिक्के की मानिंद विजन भी जेब से खिसक जाता था …तबसे बगैर विजन के ही चल रहा हूँ…यह अलग बात है कि न तो कभी दाएं चला न कभी बांये …बल्कि सीधे चलता रहा …सीधे चलने का यही घाटा रहा कि चौराहों के चातुर्य बौद्धिकता को कभी सही से नहीं समझ पाया .
.खैर मुझे क्या लेना दुनिया के दस्तूर से …
परखना मत परखने से कोई आदमी अपना नहीं होता….प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेसवार्ता और पिछले उनके कार्यकाल पर जब नजर दौड़ाता हूँ तो जेहन में यह पक्ति इत्र की तरह महकती है। आवारा पूंजी के दम पर बाजार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जादुई आभा लोगों के जेहन में ऐसे गढ़ी कि मानों नरेंद्र मोदी कोई हाड़ मांस के न होकर कोई त्रिशूलधारी या गदाधारी कोई अवतारी पुरुष हो .. बाजार ने अपने फायदे के लिए मोदी को महानायक बनाया …जनता ने बाजार के सच को अपना सच मान लिया …और धूल में लिपटी हुई जनता अपनी जली रोटियों में मोदी के अक्स को देखने लगी ….प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धीरोदात्त नायक बनने की चाह में लोगों के चेतन मन में पूर्वाग्रह के आईने टांगते गए …
प्रधानमंत्री प्रेसवार्ता में जो भी बोल रहे थे उससे यही प्रतीत हो रहा था कि प्रधानमंत्री के गले में किसी कार्यकर्ता की नहीं बल्कि एक हारे हुए व्यक्ति की आवाज समाई हुई है। भौतिकता के आतंक की भी एक अपनी सीमा होती है और वह भी धूल जैसे मामूली कण से टूट जाती है और व्यक्ति अपने भीतरी मन के सच को उजागर करके खुद के बोझ से खुद को मुक्त करने का रास्ता अख्तियार करता है।
भारतीय जनमानस बाजार के तिलस्म से भले ही उत्पाद के प्रति अपने आकंठ को ही अपना सच मानकर जीने के लिए खुद को अभ्यस्त कर रही हो लेकिन यह व्यक्ति की प्रवृत्ति हो सकती है उसकी वृत्ति कभी नहीं ..
काश!नरेंद्र मोदी अपनी वृत्ति को अपनी मौलिकता बनाये होते तो आज उनके चेहरे पर एक स्थाई चमक होती।।
#नीतीश मिश्र
परिचय : १ मार्च १९८२ को बनारस में जन्में, प्रारंभिक शिक्षा ग्राम पहाड़ीपुर, जिला मउ( उत्तरप्रदेश ) से हासिल कर बी.ए. ( लखनउ विश्वविधयालय) और एम ए ( हिन्दी साहित्य में इलाहबाद विश्वविधयालय)किया | कविता के क्षेत्र में सामाजिक, राजनीतिक, व्यवस्था को विकल्प देती कविताए लिखने के लिए प्रसिद्ध है मिश्रा| अपने समय को विकल्प देने की और व्यवस्था से जूझने की ताक़त नीतीश मिश्र के शब्दों मे दिखाई देती है और उस आदम की बात करते है जिसको व्यवस्था भूल चुकी हैं | देश की राजधानी दिल्ली में रहकर भी मिश्र ने अपनी कविताओ को रंग दिया | विगत 5 वर्षो से इंदौर (मध्यप्रदेश ) में दैनिक अख़बार में रह कर पत्रकारिता कर रहे है | नीतीश मिश्रा के जीवन के आँगन का प्रथम केंद्र इलाहबाद है तो दूसरा केंद्र इंदौर | इंदौर की मिट्टी का मिश्रा अपने व्यक्तित्व में बार-बार अतिक्रमण करते हैं | जो संघर्ष हिन्दी जगत के मूर्धन्य कवि ‘मुक्तिबोध’ ने मालवा की धरती पर रहते हुए किया था ठीक उसी तरह का ताना-बाना मालवा ने नीतीश मिश्रा की आत्मा में उकेरा है |