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![surindar kour](http://matrubhashaa.com/wp-content/uploads/2018/06/surindar-kour-300x172.png)
इशक करके तुमसे ,ख़ाक में मिल गये।
कहकहे लगाते लब ,जैसे कि सिल गये।
आवारगी का आलम ,हम बताये भी कैसे
खेल खेल में बस,ऐसे कितने ही दिल गये।
हुस्न पर मरने वालो की अदा खास है यारो
अक्ल वाले ही होते बस ग़ाफ़िल गये
ज़ौक़ ऐ तमन्ना की क्या बात हम करे
सागर में डूबने को जाने कितने साहिल गये।
कितना मुशकिल है न पूछ ,पर्चा ऐ इशक
अव्वल इस में आते ,कितने ही जाहिल गये।
#सुरिंदर कौर
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