खतरे का घर

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rambahadur
खतरे के निशान से ऊपर तुम
आ चुकी वह नदी हो
कठिन है बचना मेरा
शायद बह जाऊंगा तेरे साथ
उस किनारे ही मेरी जमीन थी
छोटा था सपनों का घर
तिनका तिनका जतन कर
लिखा था लहू से उस पर
सिर्फ तुम्हारा ही नाम
पता था मुझे किनारा नदी का
होते खतरे बस जाने में
खतरों के बिना नहीं सम्भव है
पुरूषार्थी का जीवन
गहरी नदियों के आवेग
पसन्द थे मुझे बहुत
सोचकर किया था चुनाव
कैसे किया होगा सोचो
अकेला प्रेम तूफानी नदी से
#राम बहादुर राय “अकेला”
एम.ए.(हिन्दी, इतिहास ,मानवाधिकार एवं कर्तव्य, पत्रकारिता एवं जनसंचार),बी .एड.
मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार,
बलिया (उत्तर प्रदेश)

matruadmin

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