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चैत्र में पड़े समय के नव-चरन।
प्रत्युष बेला में मेरा शत-शत नमन।।
चौकड़ी भरता चलता रश्मि-रथी।
नित नव चमक रहती प्रभात के क्षण।।
यंत्रवत पथ के कारज करता चलता।
संवत्सर सृष्टि चक्र का अनूप प्रबन्धन।।
आर्य संस्कृति की ध्वजा तले तपोनिष्ठ।
श्रेष्ठ वृत्ति,विमल कीर्ति का हो वरण।।
#विवेकानन्द बिल्लौरे (व्ही.एन.बी)
परिचय : विवेकानन्द बिल्लौरे (व्ही.एन.बी) इन्दौर के विजयनगर में रहते हैं और विज्ञान में स्नातक हैं। आप मेन्युफेक्चरिंग एवं निर्यातक के तौर पर व्यवसाई हैं। अच्छा लेखन आपका शौक है।
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