Read Time44 Second

कभी कभार ये आईने
अठखेलियां करते
खुद की पहचान हेतु
जब भी भटकते रहते
आते मेरे ही पास
स्वयं को देखने के लिए
और तो और
लौट भी जाते
लज्जित होकर
मैं ही पुकारता रहता
देर तक
उसको ही
फिर दूर जाकर
बोला वह
मित्र बेहतर है रहना
होकर “अकेला”ही
वो भी
तुम्हारी ही तरह
#राम बहादुर राय “अकेला”एम.ए.(हिन्दी, इतिहास ,मानवाधिकार एवं कर्तव्य, पत्रकारिता एवं जनसंचार),बी .एड.मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार,बलिया (उत्तर प्रदेश)
Post Views:
11

