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अम्बर पर यूँ छाई लाली,
शीत ने ज्यूँ मेहंदी रचा ली,
धुंध की चूनर हुई पुरानी,
ओढ़ चुनरिया धूप की धानी,
तुहिन कणों के धर आभूषण,
शीत यौवना बन गई दुल्हन,
फूलों के कँगना खनकाती,
किरणों की पायल छनकाती,
मदमस्त हुई इठलाती गाती,
जल-दर्पण को देख लजाती,
पीत हरित,नील कुसुमल,
कर सोलह सिंगार सकल,
कोहरे की डोली पे सवार,
चली शीत-वधू पी के द्वार,
पीत किये सरसों ने हाथ,
सजल नयन होकर नतमाथ
लेकर अपने सारे साज,
करने विदा आये ऋतुराज।
#रश्मि शर्माउदयपुर(राजस्थान)
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