खुशियों की टोकरी में,
उम्मीदों की धूप लिए,
वह गुनगुनाती जाती है,
घंघोर अंधेरा टूटेगा,
जुल्म की धुंध छट जाएगी,
जब इल्म का सूरज उगेगा,
ज्ञान प्रकाश छा जाएगा,
तब
नभ चूमने उड़ेगे, सब खग,
हर कली फुल बन जाएगी,
जब ज्ञान चक्षु खुल जाएंगे,
भंवरे, गीत ये गाएंगे,
“एक दिन वो भी आएगा,
जब हम, एक इंकलाब लाएंगे,
इंसानी गैर बराबरी को,
इतिहास के पन्नों में दफनाएंगे,
सही मायने में तब,
इंसान को इंसान होने का,
गौरव हम दिलाएंगे,
हम इंकलाब लाएंगे,
जब, ज्ञान चक्षु खुल जाएंगे,
वैज्ञानिक चेतना से हम,
इस दूनिया के,
झूठे मिथकों से रहस्य हटाएंगे,
झूठे मिथकों से रहस्य हटाएंगे,
जब वैज्ञानिक चेतना जागृत कर पाएंगे,
इसलिए
रचनात्मक-विवेचनात्मक-शिक्षाशास्त्र
के लिए हम संघर्ष करते जाएंगे।
शिक्षा के नाम पर हम
‘जानकारियों का बोझा’ न हम उठाएंगे
पर भाषा में रट-रट कर हम,
छद्म ज्ञान का भ्रम न पाले जाएंगे
इसलिए सांस्कृति बोलियों में,
रचनात्मक विवेचनात्मक शिक्षण ही कराएंगे।
अजी! समान विद्यालयी व्यवस्था के लिए,
हम, संघर्ष करतें जाएंगे।
हम, संघर्ष करतें जाएंगे।।“
#अश्विनी कुमार ‘सुकरात’