वह दिन जब हम आए थे,
हाँ,खाली हाथ
तनहा,अधूरे से…….
मिला यहाँ अपनों का साथ।
कोरे कागज़,खाली कैनवास से,
थे भोले भाले..
रंग मिले इस दुनिया से
कुछ श्वेत,कुछ काले।
पर अब सीख गए हैं,
छल-कपट,द्वेष-राग..
अस्तित्व बचाने हो रही
अब दुनिया की दौड़ भाग।
फिर जन्मदिवस तुम आए,
जीवन ध्येय याद दिलाए..
पुण्य पूँजी का संग्रह कर लें
क्योंकि जाना है खाली हाथ।
वह दिन जब हम आए थे,
हाँ,खाली हाथ…….
हाँ हाँ खाली हाँथ…….।।
#शशांक दुबे
परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में पदस्थ है| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय है |