प्रतीक्षा

0 0
Read Time2 Minute, 51 Second
kiran baranval
जीवन की संध्या बेला में जब तन के साथ मन भी जर्जर होने लगता है तब तक अपनी संतति भी आजीविका के लिए मजबूर हो अपनी जड़ों से दूर जा बैठती हैं। जिन बच्चों की किलकारियों और चुहलबाजी से घर की ईंटे भी
ठहाका मारा करतीं थी आज वहां घुप्प सन्नाटा पसरा हुआ है। गहरी नीरवता को तोड़ती महरी की आवाज़ या यदा कदा पति-पत्नी के संवाद जिन्दा रहने का सबूत दे दिया करता हैं ।
बुजुर्ग दंपत्ति एक दूसरे की भावनात्मक जरूरतें पूरी करते मानो जीवन दीप के बुझने का इन्तजार कर रहे हों।
बदलते मौसम के कुप्रभाव ने बुढ़ी हड्डी को अपने चपेट में लेने में देरी नहीं की।   पति की सेवा करती जीर्ण शीर्ण काया भी अंततः मौसम की मार से स्वंय को बचा न पाई।
दो बक्त की रोटी तो काम वाली बना जाती पर बीमारी से
लड़ने का हौसला वे कहाँ से पाते जो अपने सगे ही दे सकते।
मन बहलाने के लिए बागीचे में झूला झूलते अतीत के सुखद दुखद पलों को जीते वर्तमान से कोसों दूर जा रहे थे कि कौवे की कर्कश बोली ने ध्यान भंग कर दिया।
‘अरे ओ मुँहजली क्यों शोर कर रही हो? किसके आने का बाट जोहने कहती हो ? भला सूखे वृक्ष पर किसी ने नीड़ बनाया है।” साड़ी के आँचल से वृद्धा  चूपके से बह आए
आँसू को पोंछ लिया कहीं पति ने देख लिया तो फिर सारा दिन उदासी से घिरे रहेंगे ।
मन बदलने के लिए सरसरी निगाहों से बागीचे का मुआयना करने लगी,बेतरतीब तरीके से फैले पौधे को  बारिश की बूंदो ने जिन्दा तो रखा था पर देखभाल के अभाव में चमन उजाड़ प्रतीत हो रहा था।
अचानक हाथ में रखी मोबाइल घनघना उठी। बेटे ने, उन्ही के शहर में पदस्थापन की खबर दे दूनिया की सारी खुशियाँ उनके दामन में डाल दिया।होठों पर मधुर स्मित खेल गई ,जीने का हौसला एकाएक बढ़ गया था ,उनलोगों का। दूर किसी पेड़ के सूखे डाल पर हरे हरे कोपल निकल रहे थे।कौवे के कांव कांव की आवाज मधुर संगीत सा मन को उत्साहित कर रहा था।
फड़फड़ाती लौ के बुझने से पहले ही दीप में घी डाल दिया गया।
#किरण बरनवाल 
जमशेदपुर 

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

मौकापरस्त मोहरे

Wed Dec 12 , 2018
वह तो रोज़ की तरह ही नींद से जागा था, लेकिन देखा कि उसके द्वारा रात में बिछाये गए शतरंज के सारे मोहरे सवेरे उजाला होते ही अपने आप चल रहे हैं, उन सभी की चाल भी बदल गयी थी, घोड़ा तिरछा चल रहा था, हाथी और ऊंट आपस में […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।