नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद (उ. प्र)
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कुछ लोग आजकल घमंड में कुछ इस तरह चूर हूँ।
उड़ना चाहते हवा में,फिर भी जमीन पर चलने को मजबूर है।।
कुछ लोग आजकल शातिर कव्वे सी नजरे चला रहे है।
बनना चाहते भला,फिर भी कभी ना कभी चोट ही पहुँचा रहे है।।
कुछ लोग आजकल शतरंज की बिसात बिछा रहे है।
अपने आप को बचाने के लिए अपनो को खा रहे है।।
कुछ लोग आजकल अपने बुजुर्गों की भी खिल्लियां उड़ा रहे है।
परते जो चढ़ाई हुई है अपनेपन की चेहरे पर,खुद ही हटा रहे है।।
कुछ लोग आजकल खुद को समझ ही नही पा रहे है।
बड़े छोटे सब इन लोगो के सामने अपनी इज्जत गवा रहे है।।
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