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प्रशासन की नाकामी का कितना भद्दा खेल,
जाने कितनों को लील गई वो कम्बख्त रेल,
वो कम्बख्त रेल दशहेरा हो गया काला,
जाने कितने घरों से मिट गया उजाला,
खुशियां लेने आए थे पर आँसूअन भरी परात,
जाने वो कहां बिछड़ गए आए थे जो साथ,
आए थे जो साथ बिन उनके होगी दीवाली कैसे,
प्रभु किसी को दिखलाये नहीं दिन फिर ऎसे।।
कवि-हरभगवान शर्मा “हरि”
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