जिम्मेदारीं की गठरी ले,मैं दोड़ आया हुं,,
ऐ नोकरी मैं घर छोड़ आया हुं,,
बचपन के वो खेल खिलोने, रेत से बनते घर के घरौंदे,,
वो बारिश़ का पानी जो काग़ज की कश्ती डूबोदे,,
उन सारी यादों से मैं मुहं मोड आया हुं,,
ऐ नोकरी मैं घर छोड़ आया हुं,,
वो गांव की गलीयां, वो यारों की टोली,,
वो अल्हड़पन की मस्ती, वो भाभी संग हंसी ठिठोली,,
उन किस्सो को ,उन हिस्सो को पिछे छोड़ आया हुं,,
ऐ नोकरी मैं घर छोड़ आया हुं,
वो मां के हाथ की रोटी, वो पिता के कांधे का झूला,,
वो भाई से तकरारे, बहना के नख़रो को भूला,
वो कुटुंब, कबीला सब सारा मैं छोड़ आया हुं,
ऐ नोकरी मैं घर छोड़ आया हुं,
वो किसी की आखों पे मरना, वो किसी की यादों में रमना,,
वो किसी के इश्क़ की खुशबू से स्वंय को आन्नदित करना,,
उन कसमों को उन वादो को मैं तोड़ आया हुं,,
ऐ नोकरी मैं घर छोड़ आया हुं ।
# सचिन राणा हीरो
हरिद्वार उत्तराखण्ड।
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