*ऐसे डाॅक्टरों की डिग्रियां छीन लें*

0 0
Read Time3 Minute, 23 Second
vaidik
किसी भी राष्ट्र को संपन्न और शक्तिशाली बनाने के लिए सबसे जरुरी दो चीजें होती हैं। शिक्षा और चिकित्सा। हमारे नेताओं ने पिछले 70 साल में इन दोनों मामलों में जितनी लापरवाही दिखाई है, वह माफ करने लायक नहीं है। भाजपा की सरकार के पिछले चार साल भी पिछली सभी सरकारों की तरह खाली निकल गए। अपने प्रचारमंत्रीजी ने सारा अमूल्य समय नारेबाजी में बिता दिया। शिक्षा की दुर्दशा जैसी है, उस पर मैं पहले कई बार लिख चुका हूं लेकिन गांवों में चिकित्सा की जो स्थिति है, उस पर आए नए आंकड़े दिल दहला देनेवाले हैं। देश की लगभग 70 प्रतिशत जनता गांवों में रहती है लेकिन उनकी चिकित्सा के लिए 20 प्रतिशत डाॅक्टर भी उपलब्ध नहीं हैं। दूसरे शब्दों में 70 प्रतिशत शहरी जनता के लिए देश के 80 प्रतिशत डाॅक्टर हैं लेकिन गांवों के करोड़ों लोग बिना इलाज के अकाल मौत मर जाते हैं ? कई राज्य सरकारों ने उन डाक्टरों पर जुर्माना ठोक रखा है, जो डिग्री मिलने के बाद कुछ समय के लिए भी गांवों में जाने से मना करते हैं। ये डाॅक्टर 10-10 लाख रु. जुर्माना भर देते हैं लेकिन गांवों में नहीं जाते। वे शहरों में रहकर निजी प्रेक्टिस करते हैं और खुली ठगी के जरिए रोगियों से लाखों रु. वसूल कर लेते हैं। ऐसे डाॅक्टरों की डिग्रियां छीन लेने और उनकी प्रेक्टिस पर प्रतिबंध का प्रावधान राज्य सरकारें क्यों नहीं करतीं ? सरकारों का एक दोष यह भी है कि उन्होंने ज्यादातर मेडिकल काॅलेज बड़े-बड़े शहरोें में खोल रखे हैं। यदि वे दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में खोले जाएं तो डाॅक्टरों को अपने छात्र-काल में ही ग्रामीण जीवन का अभ्यास हो जाए। गांवों में न तो आपरेशन थियेटर होते हैं, न आधुनिक मशीनें होती हैं और न ही डाॅक्टरों को आवास और यातायात की समुचित सुविधाएं मिलती हैं। भारत की डाक्टरी की सबसे बड़ी कमी यह है कि वह आयुर्वेद, यूनानी, होमियोपेथी और प्राकृतिक चिकित्सा का कोई लाभ नहीं उठाना चाहती। इस दिमागी गुलामी से छुटकारा हमारे एलोपेथिक डाॅक्टरों का कब होगा, पता नहीं। जरा, हमारे नेता लोग चीनी नेता माओ त्से-तुंग के ‘नंगेपांव डाॅक्टरो’ के महान अभियान के बारे में पढ़ें, जो उन्होंने 1965 में शुरु किया था तो शायद उनकी आंखें खुलें कि गांवों के लोगों की चिकित्सा-सेवा कैसे की जाती है।
#डॉ. वेदप्रताप वैदिक

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

मासूमों के चेहरे सियासी खून से क्यों धो रहे हो

Mon Sep 10 , 2018
अपने खेतों,अपने बगीचों में जहर क्यों बो रहे हो मासूमों के चेहरे सियासी खून से क्यों धो रहे हो तुमने ही खुद जलाई हैं सारी की सारी बस्तियाँ अब अपना घर जला तो इस तरह क्यों रो रहे हो बच्चियाँ लुट गईं, खत्म हो गईं सब तहज़ीबें एक दिन सब […]

नया नया

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।