नई सोच

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aditi rusiya

रिचा पढ़ी लिखी थोड़ी नए ख़यालात की लड़की थी उसने दिल्ली से एम बी ए किया था । उसकी शादी छोटे शहर में हुई , जहाँ बहुएँ आज भी थोड़ा पर्दे में रहती हैं । रिचा के घर का माहौल भी थोड़ा पुरतनपंथी वाला था । रिचा जब शादी होकर आई तो उसने देखा जब तक घर के बड़े खाना नहीं खा लेते तब तक घर में कोई भी महिला खाना नहीं खाती । दिन भर सिर ढाँक कर रहती हैं । महिलाओं का घर से बाहर जाना भी उचित नहीं माना जाता ।
उससे रहा नहीं गया उसने अपनी जेठानी से पूछा भाभी आप भी ये सारे नियम क़ानून मानती हैं । आप तो ख़ुद इतनी पढ़ी लिखीं है उसके बावजूद भी ? मैं ते नहीं कहती भाभी कि ये सारी बातें ग़लत हैं पर ! इन सब को बदला भी जा सकता है ।
नहीं नहीं रिचा तुम बिल्कुल मत बोलना तुम दादी को जानती नहीं । दादी  ग़ुस्सा बहुत तेज़ है । तुम अभी नई नई हो ।
तो क्या हुआ भाभी ?
आपको भूख नहीं लगती मेरा तो भूख के मारे बुरा हाल हो रहा है ।
मम्मी जी मम्मी जी चलिए न दो बज गए खाना लगा दूँ ।
नहीं रिचा अभी दादा जी ने खाना नहीं खाया बाद में ।
ये क्या मम्मी आपको दवाइयाँ लेनी होती हैं न और दादी को भी ।
आप टाईम से दवा नहीं लेती इसलिए तो आपको इतनी समस्याएँ हैं । खाना पीना सही समय पर होगा तो स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा ।क्यों भाभी  सही कहा न मैंने ।
अब आप हीबोलो न दादी । मैं क्या बोलूँ तुम तो आज की आई अपने नियम क़ानून चलाने लगीं । कल बोलोगी हमको घर से बाहर नौकरी करने जाना है , तो हम सिर नहीं ढाँक सकते । ख़ुद तो नए फैसन की हो दूसरी बहुओं को भी बिगाड़ के रख दोगी …….
दादी दादी ….. एक मीनिट आप मुझे अपनी बेटी मानती हैं न आप कहती हैं न कि हम आपकी बहुएँ नहीं बेटियाँ हैं । क्या आप अपनी बेटियों का नौकरी करना पसंद नहीं करती ? जब नीरू दीदी नौकरी कर सकती हैं तो फिर हम क्यों नहीं ।
भाभी भी इतनी पढ़ी लिखीं हैं मैं भी इसमें परेशानी ही क्या है ?
आज मैंने एम बी ए किया है अगर मैं इनके साथ इनके व्यापार में हाथ बटाना चाहूँ या भाभी तो बुराई क्या है ।
दादी आज लोग कहाँ से कहाँ पहुँच गए पर आप लोग अपनी सोच नहीं बदल पाए ।
आपको अपनी सोच बदलनी होगी दादी ।
चुप रहो ! बहुत देर से बहस कर रही हो रिचा । तुम्हें शर्म नहीं आती  तरह दादी से बहस करते ।
चलो चलो यहाँ से रिचा । मैंने पहले ही मना किया था तुम्हें पर तुमने मेरी बात नहीं मानी ।
क्या हो रा है भाई ये शोर कैसा ?
कुछ नहीं नई बहुरानी ज़रा नए ख़यालात की हैं घर के क़ायदे क़ानून  बदलना चाहती हैं । कह जो कुछ भी हुआ सब कुछ दादी ने दादा जी और घर के सदस्यों को बता दिया ।
हाँ सही ही तो कह रही है बहु , वो आज की है नए ख़यालात हैं उसके कभी न कभी तो बदलना ही होगा ये सब । आज कल सभी पढ़ी लिखी बहुओं की सोच अलग होती है राधा हम उन्हें जितना बाँधेंगे वो उतनी ही हमारे ख़िलाफ़ जाएँगी । आज की पीढ़ी *नई सोच* रखती है हमें ही समय के अनुसार अपने आप को परिवर्तित करना होगा ।
इसमें बुराई ही क्या है ।
रिचा , शुभी कहाँ हो भाई चलो आज से सारे नियम क़ानून ख़त्म । आज से हम सभी नई सोच के साथ  अपनी जीवन शैली को अपनाते हैं ।

#अदिति रूसिया
वारासिवनी

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